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________________ ५०६ प्रतिक्रमण सूत्र. हवे पूर्वोक्त जंगादिकें विचारीने पण जेम संयमयोग हीन थाय नही,ते रीतें पञ्चरकाण की, थकुं पण प्रकारनी शुद्धियें करी सफल थाय, माटें पच्चरकाणनी उ विशुछिनुं श्रापमुं हार कहेले. फासिय पालिय सोहिय, तिरिय किट्टिय आरादिय उसुई। पच्चरकाणं फासिय, विदिणोचिय कालि जं पत्तं ॥ ४४ ॥ अर्थः-एक (फासिय के ) फासित एटले पञ्चरकाण फरश्युं, बीजें (पालिय के०) पालित एटले पच्चरकाण पादयु, त्रीजु, ( सोहिय के )शो जित एटले पच्चरकाण शोजाव्यु, चोथु (तिरिय के०) तीर्णं एटले पञ्चरकाण तीमु, पांचU (किहिय के०) कीर्त्तित एटले पञ्चरकाण कीयु, हुं (आ राहिय के) आराधित एटले पञ्चरकाण श्राराध्यु ए (उ सुझं के०) प्र कारें शुकै करी शुद्ध एयूँ (पञ्चरकाणं के०) पञ्चरकाण, फलदायक, होय. हवे ए ब विशुद्धिना अर्थ कहे जे. तिहां प्रथम सम्यक् प्रकारें (विहिणोचियकालि के०) विधियें करीउ चित कालें एटले उचितवेलायें (जं पत्तं के) पञ्चरकाण प्राप्त थयु एटले सूर्योदयथी पहेलां पञ्चरकाण उचितकाले जे पाम्युं एटले जे पच्चरका ण की, ते यावन्मात्र जेटला काल लगण ग्रहण कह्यु, तावन्मात्र तेटला काल लगें पहोंचामबुं तेने (फासिय के० ) फरश्युं कहीयें ॥ ४ ॥ पालिय पुण पुण सरियं, सोदिय गुरुदत्त सेस नोयणन ॥ तिरिय समदिय कालो, किहिय नोयण समय सरणे ॥४५॥ अर्थः-बीजुं ज्यां लगें पच्चरकाण पूरूं न थाय, तिहां लगे (पुणपुण के०) वारं वार उपयोग देश्ने सावधानतायें (सरियं के०) संनाडं जे महारे अ मुक पच्चरकाण आजे , ए रीतें पच्चरकाणने स्मरणमा राख, ते (पालिय के०) पालुं कहीयें. त्री (सोहिय के०)शोजित एटले शोजाव्यु,ते आहारादिक लाव्या हो श्ये ते प्रथम (गुरुदत्त के०) गुर्वादिकने निमंत्री आपीने पढ़ी (सेस के) शेष रह्यु होय जे (जोयण के०) जोजन तेने पोते लेवाथकी एटले पञ्च स्काण की, जे ते पूरण थया पड़ी ते वस्तु लावी पदेला गुरुने श्रापी पड़ी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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