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पच्चरकाण नाष्य अर्थसदित. ४५३ दूधनुं दही, त्रीजु बालीना दूधनुं दही अने चोथु गामरना दूधनुं दही, ए चार दहीना नेद विगरूप जाणवा. __ हवे तेल विगयना चार नेद कहे जे. एक ( तिल के ) तिल- तेल, बीजुं (सरिसव के०) सरशवनुं तेल त्रीजुं (अयसि के० ) अलसीनुं तेल अने चोथु (लट्ट के) काबरी कसुंबा धान्य खसखसना दाणानुं तेल, ए (तिल के०) तेल विगश्ना (चऊ के०) चार नेद विगश्याता रूपें जाणवा. अने बीजा एरंमीयानां फूलां, दिमोल, मधुकफल, नालियेर, खदिर, शिंश पादिक यावत् लादापाकादिक सर्व जातिनां तेल ते नीवियातां जाणवां.
हवे गोल विगश्ना वे नेद कहे . एक (दवगुरु के०)अव्यगोल ते ढीलो राबमीयो रसरूप गोल जाणवो, बीजो (पिंमगुमा के०) पिंम रूप गोल ते कागे विविध जातिनो गोल जाणवो. ए (दो के०) वे प्रकारना गोल जाणवा. __ हवे (पक्कन्नं के०) पक्वान्न विगश्ना बे नेद कहे , तेमां एक तो पूर्वे जे चार जातिनां तेल कह्यां , तेमां तद्युं होय तेने (तितलिय के) तेलमां तलेढुं पक्कान्न कहियें बीजं पुर्वे जे चार जातिना घृत कह्यांडे, तेमां तन्युं होय तेने (घयतलियं के०) घृतमां तलेढुं पक्वान्न कहीये. त लियं शब्द वे स्थानकें जोमवो. ए रीतें दूधना पांच, घृतना चार, दहीना चार तेलनां चार, गोलनाबे अने पक्वान्नना बे, मली एकवीश नेद जदय विगयना कह्या. ए विगयना नामनुं पांचमुं हार पूर्ण थयु. उत्तर बोल पञ्चास थया॥ हवे ए जदय विगयना निवीयाता त्रीश कराय ने तेना नेदोनुं बहुछार कहे.
पयसाडि खिर पेया,वलेहि दुटि हविगगया॥ दरक बहु अप्प तंउल, तच्चुन्नबिल, सदिअ उ॥३२॥ अर्थः-प्रथम दूधना पांच निवियाता थाय ते कहे . एक (दरक के०) शाख अने टोपरादिक नाखीने दूध रांध्यु होय तेने (पयसामि के०) पय सामी कहीयें, बीजु (बहुतंकुल के०) घणा चोखा नाखीने दूध रांध्यु होय तेने (खीर के०) खीर कहीयें, त्रीजु (अप्पतंकुल के०) अल्पतंऽल एटले थो डा चोखा नाखीने दूध रांध्यु होय तेने (पेया के० ) पेया कहिये, चोथु (तचुन्न के० ) ते चोखाना चूर्णे करी सहित एटले ते चोखानो बाटो लोक नाषायें फूकरणुं कहे , ते नाखीने, दूध पचाव्यु होय, राध्यु होय
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