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पच्चरकाण नाष्य अर्थसहित. ४१ विनानुं थाय, एटला माटे तेनुं नाम असिछेण वा कहेवाय. ए ड श्रागार पाणीना कह्या. तेनी साथें पूर्वे कहेला शोल आगार मेलवीयें, तेवारें सर्व मली बावीश आगारोनी संख्या थाय ॥ २ ॥
आंहीयां प्रत्येक आगारें वा शब्द मूकेलो ते एक एकथी बीजा बी जामां विशेष देखामवाने माटे , एटले लेपथी अलेप विशेष, अलेपथी अब विशेष, अन्थी बहुलेप विशेष, बहुलेपथी ससि विशेष, ससिबथी असिक विशेष जाणवो, परंतु लेपादिकनुं पाणी लीये तो पण उपवासादि कनो नंग थाय नही. इति नावः ॥ ए प्रकारें अपुनरुक्त एटले फरी न उच्चरीयें एवा बावीश आगारोना अर्थनुं व्याख्यान लेशथी देखाड्यु. ए आगारोना अर्थ- चोथु. द्वार पूर्ण थयु उत्तर बोल चालीश थया ॥
हवे दश विगश्ना वरूप, पांचमुं द्वार कहे . पण चन चन चनउविह, नरकमुहाइविगगवीसं ॥ ति उति चनविद अन्नका, चन महुमाई विगश्बार ॥॥
अर्थः-जे इंडिया दिकने पुष्ट करे, मन, वचन अने कायाना योगने अप्र शस्त विकार उपजावे, ते विग कहीयें, ते विग दश नेदें . तेमांथी चार विग तो साधु अने श्रावक बेहने अनदयज ने एटलेलदाण करवा योग्य नथी, अने जदय विग साधु अने श्रावक बेहुने जदय करवा योग्य डे माटे एने नय विग कहीये, तेना उत्तर नेद बार थाय ते कहे .
प्रथम मुध विग ( पण के० ) पांच न्नेदें बे, बीजी दधि विग (चल के०) चार नेदें , त्रीजी घृतविगइ (चज के०) चार नेदें , चोथी तेल विग (चन के० ) चार नेदें . पांचमी गोल विग (5 के ) बे नेदें बे. बही पक्वान्न विग (विह के०) विविध एटले बे नेदें , ए (कुझाइ के०) मुग्धादिक (ब के०) (नरक के०) जदण करवा योग्य ( विग के०) विग ने तेना सर्व मली उत्तरनेद (गवीसं के) एकवीस थाय बे.
हवे चार अनदय विगश्ना उत्तर नेद कहे जे.प्रथम मधु विगइ (ति के०) त्रण नेदें , बीजी मदिरा विग (5 के०) बे नेदें , त्रीजी मांस विगश् (ति के ) त्रण नेदें , चोथी माखणविग ( चउविह के० ) चार नेदें बे. ए (महुमाई के) मधु श्रादिक (चड के ) चार (अजरका के०)
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