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________________ ४६६ प्रतिक्रमण सूत्र. ॥अथ॥ ॥ तृतीयपच्चरकाणनाष्यप्रारंजः॥ तिहां प्रथम पञ्चरकाणनां नवहार एक गाथायें करी कहे बे. दर पञ्चकाण चनविदि, आदार मुवीसगार अजुत्ता ॥ दस विगई,तिस विगई, गय उदलंगा व सुदि फलं ॥१॥ अर्थः-प्रथम ( दसपच्चरकाण के० ) पञ्चरकाणना दश नेद , तेनुं छार कदेशे. बीजं पच्चरकाण करवाने विष पाठ विशेषरूप (चनविहि के) चार प्रकारनो विधि के तेनुं हार कहेशे. त्रीजुं चार प्रकारना (आहार के) आहारना स्वरूपy छार कहेशे, चोथु पच्चरकाणमां (अकुरुत्ता के०) अहिरुक्त एटले बीजी वारनां अण उच्चस्या अर्थात् एकवार कह्यां तेनां ते फरी जुदां जुदां पच्चरकाणमां आवे, ते न लेवां एवा (वीसगार के०) बावीश आगारनुं हार कहेशे, पांचमुं ( दस विगई के०) दश विकृति एटले दश विगयनी संख्या- हार कहेशे, बहुं (तिस विगगय के०) त्रीशविकृतिगत एटले उ मूल विगयना त्रीश निवीयाता थाय तेनी संख्या छार कहेशे, सातमुं एक मूल गुण पञ्चकाण तथा बीजुं उत्तरगुण पच्चरकाण एम (उहनंगा के ) बे प्रकारना नांगा पच्चकाणना थाय, तेनुं छार कहेशे. आठमुं पच्चरकाणनी ( सुधि के० ) शुछिनुं स्वरूप निश्चेथी, कहे तेनुं द्वार कहेशे. नवमुं पञ्चरकाण कस्याथी इहलोक तथा परलोक मली बे ठेकाणे ( फलं के० ) फल थाय तेनुं हार कहेशे ॥ १॥ ए मूल नवझारनां नाम कह्यां. एनां उत्तरछार आहीं विवस्यां नथी, पण ग्रंथांतरें नेतुं कह्यां बे, अने अहीं पण शरवालो थापतां ने थाय बे, ते आगल विस्तारें कहेशे. हां प्रथम पञ्चकाण शब्दनो अर्थ करे . तिहां एक प्रति, बीजूं श्रा, अने त्रीजु श्राख्यान, ए त्रण पद मलीने प्रत्याख्यान शब्द थयो . तेमां अविरतिपणानां स्वरूपप्रत्ये प्रति एटले प्रतिकूलपणे करी आ एटले श्रागार मर्यादाकरणस्वरूपें करी आख्यान एटले कहे कथन कर, ते जे जेने विषे, तेने प्रत्याख्यान कहीयें. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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