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इरियावदियं अर्थसहित. ॥ अथ खमासमण अथवा प्रणिपात ॥ ॥श्वामि खमासमणो वंदिलं जावणिजा ए
निसीहिआए मबएण वंदामि ॥ इति ॥२॥ अर्थ-(खमासमणो के०) हे दमाश्रमण ! एटले दमादिक दश विध यतिधर्मने विषे प्रधान सावधान एवा हे दमासहित श्रमण तपस्वी रुषीश्वर साधुजी! एवा आमंत्रणे करी गुरुने बोलावीने कहियें के ,तमारा चरणकमल प्रत्ये (जावणिजाए के० ) यापनीयया एटले शक्तिसहित एवी जे (निसीहिआए के ) नैषेधिक्या एटले आपणी तनु जे शरीर, तेणे करी (वंदिलं के० ) वंदितुं एटले वांदवाने (श्छामि के०) हुं वां, बुं, बुं बु. एटबुं उन्ना बतांज कहिये. पलेवी, संमासा, बे जानु, ललाट, माबो हाथ अने नूमिका प्रमार्जी बे जानु, बे हाथ, अने पांचमुं ललाट, ए पंचांगें करीनूमि फरसतो थको (मबएण वंदामिः) एवं कहे, एटले (मस्तकेन वंदामि के० ) मस्तकें करी तमोने हुं वांछ बुं, एम कहे. ए सूत्र मां त्रण गुरु, अने पच्चीश लघु, मली अहावीश अदरी ने ॥३॥ फरी उनो थर बे हाथ जोमीने नीचे मुजव समाचारी कहे.
॥ अथ सुगुरुने शातासुखपृछा ॥ श्वकार, सुहराइ, सुहदेवसि, सुखतप, शरीरनिरा बाध,सुख संजम जात्रा,निर्वहोगे जी, स्वामी शाता
डेजी, नात पाणीनो लान देजोजी॥इति ॥४॥ अर्थः-(श्वकार के० ) श्छा करुं बुं. (सुहराइ के०) सुखें रात्रि, (सुह देवसि के ) सुखें दिवस, ( सुखतप के ) सुखें तपश्चर्यामां (शरीरनि राबाध के) शरीरसंबंधी निराबाधपणामां एटले रोगरहितपणामां (सुखसंजमजात्रा के०) सुखें संयमयात्रामां (निर्वहोलोजी के०) प्रवर्तों बो जी, स्वामी जी शाता ने जी ॥४॥ एवी सुखशाता पूढीने पठी एमज उनो थको बे हाथ जोमी इरियावहियंनो पाठ कहे ते लखीयें बैयें.
॥अथ रियाव हियं ॥ ॥श्बाकारेण संदिसह जगवन् रियावदियं पमिकमामि चं॥
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