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________________ गुरुवंदन नाष्य अर्थसहित. ४४ए सुडाहो के०) अंसुख एटले बे खंनानी उपर अने ते वे खंजानी अहो एट से नीचे काखमां (पिठे के) पिठ एटले वांसानी बाजुयें (चन के) चार पडिलेहण करवी एटले बे खंना उपर अने बे काखने विषे. एमज(ल प्पय के) पमिलेहण बे पगनी उपर करवी तेमांत्रण वाम पगे अने त्रण दक्षिण पगे करतां उ थाय, एवी रीतें सर्व मली (देह के) शरीरनी पमिलेहणा (पणवीसा के०) पच्चीश थाय ॥२१॥ यहां यद्यपि श्रीआवश्यक वृत्ति तथा प्रवचनसारोझारादिकें पमिलेहणा नो विशेष विचार कह्यो नथी तो पण शहां परंपराधी संप्रदाय समाचारीयें स्त्रीन शरीर वस्त्रे आवृत होय माटें एने शरीरनी पमिलेहणा पञ्चीशमां थीत्रण मस्तकनी, त्रण हृदयनी अने बे पासाना खंनानी चार, एवं दश पमिलेहणा न होय शेष पन्नर होय तथा वली साध्वीने तो उघाडे माथे क्रिया करवानो व्यवहार डे माटें तेने मस्तकनी त्रण पमिलेहणा होय शेष सात न होय बाकी अढार पडिलेहणा होय. ___ए पमिलेहणा जे, ते यद्यपि जीवरदानी कारणचूत जव्य जीवनें बे एम तीर्थंकरनी आज्ञा दे तो पण मनरूप मांकडाने नियंत्रवा सारु बोल धारीये ते यद्यपि आवश्यकवृत्ति तथा प्रवचनसारोकारादि ग्रंथें कह्यु नथी तोपण अल्पमतिने मन स्थिर राखवा माटें “ सुत्तब तत्तदिति” इत्यादि पांच गाथा- कुलक कर्तुं , ते यहां वांदणामां अधिकार नथी तोपण ते पांच गाथानो अर्थ लखीये बैयें. , जमणा फेरथी मुहपत्तिने वधूटकनी पेरें ग्रहण करीने पडिलेहण क | ये ते कहे जे. मावा हाथनी जुजायें. त्रण वार पुंजिये त्यां हास्य, रति ने अरति, ए त्रण परिहरु. एम चिंतवीये. जमणा हाथनी नुजायें त्रण र पुंजीयें त्यां नय, शोक अने उगंडा, ए त्रण परिहरु, एम चिंतवीयें. स्तक त्रण वार पुंजीयें तेमां कृष्ण, नील अने कापोत ए त्रण माठी लिश्या बांसु,एम चिंतवियें. मुखनी त्रण पमिलेहण करीये त्यां छिगारव, रसगारव अने शातागारव, ए त्रण परिहरु, एम चिंतवीयें. हृदयनी त्रण पमिलेहणा करीये त्यां मायाशल्य, नियाणाशल्य अने मिथ्यात्वशख्य ए त्रण शल्य गहुं,एम चिंतवीये. डाबा खंना अने जमणा खंनानी नीचें उपर बे पासानी पमिलेहणा चार करीये त्यां क्रोध, मान, माया अने लोज ए चार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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