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देववंदन नाष्य अर्थसहित. श्ए के०) पुस्करवरदी कही काउस्सग्ग करी श्री सिद्धांतनी त्रीजी (थुर के०) स्तुति कहेवी पडी ( सिझा के) सिकाणं बुद्धाणं ( वेथा के०) वेयाव चगराणं इत्यादिक कही काउस्सग्ग करी अधिष्ठायिक देवोनी चोथी (थुर के० ) स्तुति कही पड़ी नीचे बेसीने ( नमुनु के ) नमुनुणं संपूर्ण क हीने ( जावंति के० ) जावंति चेश्याइं जावंत केवि साहु कही नमोर्हत् सिकाचार्योपाध्यायसर्वसाधुन्यः कही (थय के ) स्तवन कहीने, संपूर्ण (जयवी के०) जयवीयराय कहीये. ए देव वांदवानो विधि कह्यो ॥६॥
हवे यद्यपि कोश्प्राणी एटला बोल तथा एवो विधि न जाणतो होय तो पण आ कहेला आठ बोल तेमां होय तेने नक्तिवंत कहीयें. जेमाटे सं बोध प्रकरणमध्ये कर्वा ॥ जत्ति बहुमागोवस, संजलण सायणा परिहारो॥ पमिणीय संगवङाण, सइ सामळे तउङ्गुणणं ॥१॥ विहिजुंजण मस्स वण, मवही वायाण विहि पडिसेहो ॥ सिझाए श्य अमगुण, जुत्तो संपुण विहिजुत्तो ॥२॥
ए बे गाथानो नावार्थ कहे बे. एक जक्ति ते अंतरंग राग, बीजुं बहु मान ते बाह्य लोकोपचार विनयादि गुण. त्रीजो वर्णवाद यशोवादनुं वो लवू. चोथो आशातनादिकनो परिहार, पांचमो तेमना प्रत्यनीकनी साथें संग वर्जवो, बछो बती सामर्थ्य विघ्ननुं टालवं, सातमो आगलाने विधि मां जोमवं, आठमो अवर्णवाद न सांजलवापूर्वक अविधिनो निषेध क रवो अने विधिनो प्रतिसेवन करवो, एवा आठ गुण विशुभयुक्त ते सर्वो पाधि विशुद्ध संपूर्ण विधि युक्त कहीयें ॥२॥
सबोवादि विसुई, एवं जो वंदए सया देवे॥
देविंदविंद मदिरं, परमपयं पाव लहुसो॥६३॥ अर्थः-एम (सबोवाहि विसुझं के०) सर्वोपाधि विशुरू जेम होय (एवं के० ) एम एटले सर्व श्रीजिनधर्म संबंधिनी चिंता तेणे करी निर्दोष प्रकारे शुद्ध श्रझायें करी (जो के० ) जे नव्य प्राणी ( देवे के०) श्रीदे वाधिदेवने (सया के०) सदा सर्वदा (वंदए के० ) वांदे ते जव्य प्राणी जवजयरूप पद जिहां नथी एवो (परमपयं के) परमपद एटले मोक्ष रूप पद ते प्रत्यें ( लहुसो के०) शीघ्र उतावलो (पावर के० ) पामे. ते
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