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________________ ४श्न प्रतिक्रमण सूत्र. युद्ध करावे, ४ वर्षाकालादिकने विषे प्रणालीथी पाणी संग्रहे अंघोल स्नान करे, तथा पाणी पीवाना नाजन मूके, ए उत्कृष्टयी चोराशी आशा तना जिन जुवनमां वर्जवी. हवे मध्यम बहेंतालीश आशातना वर्जवी तेनां नाम कहे . १ मूत्र, २ पुरीष, ३ पाणी, ४ उपानह, ५ शयन, ६ अशन, ७ स्त्रीप्रसंग, तंबोल ए धुंकवं, १० जूवटुं रमवं, ११ जूवटादिकनुं जोवू, १५ पलांठी वालवी, १३ पग पसारवा, १४ परस्पर विवाद, १५ परिहास, १६ मत्सर, १७ सिंहासन परिजोग, १७ केश शरीर विजूषा, रए बत्र, २० खड्ग, १ मुकुट, २२ चामरनुं राखq २३ धरणुं करवू, २४ हास्यादि विलास परि हास, २५ विटसाथे प्रसंग करवो, २६ मुखकोश न करवो, २७ मलिन शरीर राखे, २७ मलिन वस्त्र पहेरे, शए अविधियें पूजा करे, ३० मननुं एकाग्रपणुं न करे, ३१ सचित्त अव्य बाहिर न मूकी आवे, ३२ उत्तरो संग न करे, ३३ अंजलि न करे, ३४ अनिष्ट, ३५ हीन, कुसुमादि पूजा पकरण राखे, ३६ अनादर करे, ३७ जिनेश्वरना प्रत्यनीकने वारे नही, ३० चैत्यअव्य खाय, ३ए चैत्यऽव्यनी उपेदा करे, ४० बती सामर्थ्य पूजावंदनादिकें मंदता करे, ४१ देवव्यादि जनक साथें व्यापार मित्रा सगार करे, ४५ तेहवा वडेरानी मुख्यता करे, तथा तेनी आझायें प्रवर्ते, ए बहेंतालीश मध्यम आशातना वर्जवी. एटले ए चोवीशमुं आशातनानुं हीर थयुं ॥ उत्तर बोल २०७४ पूर्ण थया ॥ हवे देव वांदवानो विधि कहे जे. शरि नमुक्कार नमुखुण, अरिहंत थुई लोग सब थुइ पुरक ॥ थु सिहा वेआ थुइ, नमुन जावंति थय जयवी ॥ ६ ॥ अर्थः-प्रथम (इरि के०) शरियावहि संपूर्ण पमिकमि पनी चैत्यवंदननो आदेश मागी (नमुक्कार के०) नमस्कार कही पठी (नमुनुण के ) नमु बुणं कहे. पनी उन्नो थर (अरिहंत केण) अरिहंत चेश्याणं कही काउ स्सग्ग करी एक तीर्थंकरनी (थुई के०) स्तुति कहे. परी (लोग के०) लोगस्स कहीयें पठी ( सवथुश् के ) सवलोए अरिहंत चेश्याणं कही काठस्सग्ग करी सर्व तीर्थकरनी बीजी स्तुति कहियें, पड़ी (पुरक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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