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प्रतिक्रमण सूत्र. हवे जेम साधुनें एक अहोरात्रसां सात वार चैत्यवंदन करवू कडु बे, तेम श्रावकने पण सम्यक्त्वनी शुद्धिने अर्थे नित्ये प्रत्य जघन्यथी त्रण वा र, पांच वार अने उत्कृष्टथी सात वार चैत्यवंदन करवू कडं . तेम वली गुणवंतनी नक्तिने अर्थे गुरुने वांदणां देवां तथा सर्व ज्ञानादि पंचाचार विशुछिने अर्थे सांज तथा सवार मली बेहु कालें त्रस स्थावर प्राणी करी रहित एवा प्रेदित प्रमार्जित स्थानकने विषे गुरुसादिक उ आवश्य करूप प्रतिक्रमण करवू, कारण के गुरुसादिक अनुष्ठान,अत्यंत दृढ थाय बे, माटें गुरुसादिक प्रतिक्रमण करवं. तिहां ए सर्व क्रिया करवी. अने जो गुरुनो अनाव होय तो स्थापनाचार्यनी स्थापना मांगीने ते स्थापना आगल सर्व क्रिया करवी. कारण के आ, उःखमकाल पांचमो आरो ते मांहे स्थापनानो आधार , एम श्रीजिनशासनने विषे दीपक समान श्रीजिनजागणिक्षमाश्रमण तेमणे कयु के, गुरुनो उपदेश तेना उपदर्शनने निमितें जेम जिनने विरहें श्रीजिनेश्वरनी प्रतिमानी सेवना बे, तेम गुरुना विरहें गुरुनी स्थापना करवी, जेम राजाने अजावें प्रधान राजकाज चलावे , तेम गुरुने अनावें स्थापनाचार्यनी गुरुनी पेरें सेवा करवी. ए विनय, कारण बे, माडे ते गुरुस्थापनानो पाठ कहे बे.
॥ अथ पंचिंदिय ॥ ॥ पंचिंदिश संवरणो, तद नव विद बंनचेर गुत्तिघरो चनविद कसाय मुक्को, इअ अहारस गुणेहिं संजुत्तो॥१॥पंचमहन्वय जुत्तो, पंचवि
दायार पालण समबो ॥ पंचसमि तिगुत्तो, ... बत्तीस गुणो गुरू मज ॥२॥ इति ॥२॥
अर्थः-(पंचिंदिश के०) पांचेंजियना शब्दादिक त्रेवीश विषय अने बशें बावन विकारप्रत्ये ( संवरणो के ) संवरणहार एटले रोकनार ( तह के०) तथा ( नवविह के०) नवविध एटले नव प्रकारें (बंजचेर के०) ब्रह्मचर्य एटले शीलवतनी ( गुत्तिधरो के० ) गुप्तिना धरनार, एटले शी लनी नव वामना पालनार, ( चनविह के० ) चतुर्विध एटले, चार प्रकारना ( कसाय के०) क्रोधादिक कषायथकी (मुक्को के०) मुक्त बे,
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