SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 420
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४00 प्रातक्रमण सूत्र. ( उत्तमंगं के०) उत्तमांग ते मस्तक, ए पांच अंग जिहां खमासमण आ पतां नूमिये लागे, ते पंचांग प्रणिपात कहीये. एणे करी “ श्वामि खमा समणो वंदिलं जावणियाएनिसीहियाए मबएण वंदामि " ए पाठ कहे. ए बहु प्रणिपात द्वार कह्यु. उत्तर बोल चुम्मालीश थया ॥ हवे सातमुं नमस्कार कार कहे . ( सु के ) जला एवा ( महल के०) अत्यंत महोटा गहन अर्थ जेहना एटले नक्ति, ज्ञान, वैराग्य दिशाना दीपक एवा ( नमुक्कारा के० ) नमस्कार कहेवा ते (ग के०) एक तथा ( उग के०) बे, तथा ( तिग के० ) त्रणथी मांडीने (जावय उसयं के०) यावत् एकशो ने आठ पर्यंत कहे ॥ए सातमुं नमस्कार द्वार कडं. उत्तर बोल पीस्तालीश थया ॥ २५॥ - हवे देववंदनना अधिकारें जे नवकार प्रमुख नव सूत्रां आवे बे, तेमने एक वारनां उच्चस्यां हलवां तथा नारे मलीने सर्व गणीये तेवारे १६४७ अदर थाय अने १७१ पद थाय तथा एy संपदा थाय, ए अदर, पद तथा संपदा मली त्रणे हार एकगं कहे . तेनी साथे संपदानां नाम तथा अर्थ पण कहेशे. यद्यपि श्यामि खमासमणो तथा जे अभ्यासिका ए गाथा तथा तस्स उत्तरी, अन्नब, इत्यादि अपर ग्रंथांतरें तो ए सूत्रमां संकलित नथी तथापि नाष्यमांहेला देववंदनाधिकारें बोल्या बे, अन्यथा जे पूर्वे उत्तरछार कह्यां, ते पूर्ण न थाय, तेमाटें ते सर्व द्वार एकगं कहे बे. अमसहि अम्वीसा,नवनन्यसयं च उसय सग नगया॥दो गुणतीस उसा, 3 सोल अमनग्यसय ऽवन्नसयं ॥२६॥ अर्थः-१ प्रथम “ पंच मंगल महासुयरकंध” एह नाम नवकारबे, तेनां अदर (अमसहि के० ) अमशह ते हवश मंगलं एवो पाठन णतां थाय, केम के श्रीमहानिशीथ सूत्रमध्ये प्रकटादरें हवश् मगलं ए हवो पाठ ॥ यमुक्तं ॥ पंच पयाणं पणतिस, वसचूलाई वम तित्तीसं ॥ एवं सम्मे समप्पश्. फुड मकर महसहीए ॥ इति ॥ १॥ तेमाटें जो नम स्कारनो एक अदर उदो करे, तो चोशठ विधानें नमस्कार साधवो ते न्युन थाय, तेथी छाननी आशातनानो अतिचार लागे, एवं श्रीजड्बाहु खामीयें नमस्कार कल्पें प्रकाश्युं बे, माटें हवश् मंगलं एवो पाठ कहेवो. Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy