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________________ ३ए प्रतिक्रमण सूत्र. यें. ए ( चेव के) निश्चे ( तस्सबो के ) ते पिंडस्थादिक त्रण अवस्था नो अर्थ जाणवो ॥ ११॥ ॥ हवे ए त्रणे अवस्था क्या क्या नाववी ? तेनां गम कहे . सहवणच्चगेहिं उनम, बवह पडिदार गेहिं केवलियं ॥ पलियं कुस्सग्गेदिय, जिणस्स भाविऊ सिइत्तं ॥१२॥ अर्थः-( एहवणच्चगेहिं के० ) स्नपनार्चकैः एटले न्हवण, पखाल, अ _दि पूजाना अवसरें, पूजा करनारा पूजक पुरुषोयें ( जिणस्स के०) श्रीजिनेश्वरनी (बनमबव के ) बद्मस्थावस्थाने नाववी, ते बद्म स्थावस्थाना त्रण नेद बे, एक जन्मावस्था, बीजी राज्यावस्था अने त्री जी श्रमणावस्था, तेमां प्रजुने न्हवण अर्चादिक प्रदालन करतां जन्मा वस्था नाववी, अने मेरुपर्वतनी उपर जे जन्म महोत्सव जाववो ते पण जन्मावस्थाज जाणवी. तथा मालाधारादि, पुष्प, केशर, चंदन अने अलंकारादि चढावतां राज्यावस्था नाववी. वली जगवंतने अपगत शिरकेश, शीर्ष, श्मश्रु कूर्च रहित एवा मुख मस्तकादिक देखीने श्रमणावस्थानी नावना नाववी. ए प्रथम बद्मस्थावस्था त्रण नेदें विवरीनें कही. तथा किंकली, कुसुमवृष्टि अने दिव्यध्वनि प्रमुख (पडिहारगेहिं के०) आठ महाप्रातिहार्ये करीने एटले प्रातिहार्य युक्त नगवानने देखीने बीजी पदस्थावस्था एटले ( केवलियं के० ) केवली पणानी अवस्था नावीये. तथा (पलियंक के ) पर्यकासने करी सहित एटले पलोंठी वालीने बेठा एवा (उस्सग्गेहिं के०) काउस्सग्गीयाने आकारें (य के०) वली (जिणस्स के) जिन- बिंब देखवे करीने ( सिद्धत्तं के ) सि कत्व एटले सिद्धपणानी अवस्था अर्थात् रूपातीतपणानी अवस्था प्रत्ये ( नाविक के) नाववी. केम के ? केटलाएक तीर्थंकरो पयंका सने काउस्सग्ग मुखायें मुक्ति गया माटें ज्योतिरूप अवगाहना ना ववी. आ गाथामां नाविऊ ए क्रियापद सर्वत्र संगत करवु, ए पांचमुं अवस्था त्रिक कर्वा ॥ १५ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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