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देववंदन जाय प्रर्थसहित.
द्विदिशि एटले वे दिशानुं द्वार कहीश, चोथुं जघन्य, मध्यम घने उत्कृष्ट एवा (तिजग्गह के०) त्रण प्रकारना अवग्रहनुं द्वार कहीश, पांचमुं (तिहा उवंदण्या के० ) त्रिधातुवंदनया एटले त्रण प्रकारें वली चैत्यवंदना करवी. तेनुं द्वार कहीश, बहु पंचांग एटले पांच ( पशिवाय के० ) प्रणिपात करवो, तेनुं द्वार कहीश, सातमुं ( नमुक्कारा के०) नमस्कार कर वानुं द्वार कहीश, मुं देववंदनना अधिकारें जे नवकार प्रमुख नव सूत्रां वे बे, तेना (वा के०) वर्ण एटले अक्षर ते ( सोलसयसीयाला के० ) शोलरों ने सुकतालीश थाय. तेने गणी देखामवानुं द्वार कहीश ॥ २ ॥
नवमं देववंदनना अधिकारें नवकार प्रमुख नव सूत्रानां (इगसी इसयं ho ) एकसोने एक्यासी ( तु के० ) वली ( पया के० ) पढ़ो थाय छे, ते देखावानुं द्वार कहीश, दशमुं एज नवसूत्रानां (सगनइ के०) सप्तनव ति एटले सत्ताणुं ( संपयार्ड के ) शंपदा थाय बे, ते देखामवानुं द्वार क हीरा, गीयारमुं नमुणादिक ( पणदंडा के० ) पांच दमकनुं द्वार कही श, बारमुं चैत्यवंदनने विषे पांच दमकमां (वार हिगार के०) बार अधि कार वेबे, तेनुं द्वार कहीश, तेरमुं (चउवंद पिता के०) चार वांदवा यो ग्य तेनुं द्वार कहीश, चौदमुं उपद्रव टालवा निमित्तें एक (सरणित के० ) स्मरण करवा योग्य जे सम्यग्दृष्टि देवो तेमनुं द्वार कहीश, पन्नरमुं नामस्था पादिक (चह जिला के० ) चार प्रकारना जिननुं द्वार कहीश ॥ ३ ॥
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शोलमुं (चरोथुइ के०) चार स्तुति कड़ेवानुं द्वार कहीश, सत्तरमुं देव वांदवामां पापपणादिक ( निमित्त के० ) निमित्त व बे, तेनुं द्वार कही श, ( के० ) वली अंगणी मुं अपवादें काउस्सग्गना ( सोलसखागारा ho) शोल श्रागारनुं द्वार कहीश, वीशमं काउस्सग्गमां (गुणवीसदोस के०)
गणीश दोष उपजे तेनुं द्वार कहीश, एकवीशमं (उस्सग्गमाण के ० ) का उस्सग्गना प्रमाणनुं द्वार कहीश, बावीशमं श्रीवीतरागनुं (धुत्तं के०) स्त वन केवा प्रकारें करवुं ? तेनुं द्वार कहीश, त्रेवीश ( के०) वली दिन प्रत्यें चैत्यवंदन ( सगवेला के० ) सात वेला करवुं तेनुं द्वार कही ॥४॥
चोवीसमुं देववंदन करतां देरासरमां तांबूल प्रमुख (दसासायणचार्ज के० ) दश शातनानो त्याग करवो, तेनुं द्वार कहीश, एम (सवे के० ) सर्वे
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