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________________ ३४ प्रतिक्रमण सूत्र, पांचे परमेष्ठी तेमने (वंदित्तु के० ) वंदित्वा एटले वांदीने (चिश्वंदणाश के ) चैत्यवंदनादिक एटले चैत्यवंदन तथा आदिशब्दथी गुरुवंदन अने पच्चरकाण पण लेवां. ते रूप (सुवियारं के०) सुविचारं एटले रूमा विचार प्रत्यें (बहु के०) घणा एवा जे ( वित्ति के०) वृत्ति, (नास के०) जाष्य अने (चुली के०) चूर्णि तथा नियुक्ति प्रमुख ग्रंथो तप (सुया णुसारेण के०) श्रुतने अनुसारें करीने (वुबामि के०) कहीश. परंतु म हारी मतिकल्पनायें नहीं कहीश. एटले धर्मरुचि जीवोने पंचांगी सम्म त चैत्यवंदनादिकनो विधि कहीश. कारण के समकेतनुं बीज तो शुद्ध देव, शुद्ध गुरु अने शुद्ध धर्मनुं स्वरूप जाणवू, अने सद्दहवू डे ते मात्रै अढार दोष रहित, निष्कलंक एवा जे श्रीअरिहंत देव बे, ते शुक देव ले तेना स्थापनादिक चारे निदेपा वांदवा योग्य , तो हां चैत्यश ब्दें श्रीअरिहंत तथा श्रीअरिहंतनी प्रतिमा तेनी जे वंदना करवी, ते वि धिसहित करवी ते विधि कहीश ॥ इति ॥१॥ हवे ते चैत्यवंदननो विधि मूल तो चोवीश छारें सचवाय , ते चोवीशना वली उत्तर नेद २०७४ थाय . माटें चोवीश छारनां नाम, प्रत्ये क हारना उत्तरजेदनी संख्या सहित चार गाथायें करी कहे . ददतिग अदिगम-पणगं, उदिसि तिहुग्गद तिदा न वंदण या॥पणिवाय-नमुक्कारा, वरमा सोल-संय-सीयाला ॥२॥ गसीइ सयं तु पया, सग-नन संपयान पण दंमा ॥ बार अदिगार चळवं, दणिक, सरणिक चनद जिणा ॥ ३॥ च जरो थु निमित्तठ, बारद देऊअ सोल आगारा ॥ गुण वीस दोसनस्स, ग माण थुत्तं च सगवेला ॥४॥दस आ सायण चार्ज, सवे चिश्वंदणाइं गणाई ॥ चनवीस ज्वारे हिं, उसहस्सा हुँति चन सयरा ॥ ५॥ इतिदारगादा ॥ अर्थः-प्रथम देव वांदतां नैषेधिक आदिक (दहतिग के०) दश त्रिक साचववा जोश्ये, तेनुं हार कहीश, बीजं (अहिगमपणगं के०) अनिगम पंचक एटले पांच अनिगमनुं द्वार कहीश: त्रीजुं देव वंदन करतां स्त्रीने कयी दशायें अने पुरुषने कयी दशायें उन्ना रहे, जोश्ये, ते (उदिसि के०) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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