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________________ पोसहपारवानो विधि. वास्ते जूई जूई प्रतिक्रमणसूत्र बांधेलु नथी,अने जोनक जीवने प्रतिक मण करवानी प्रजुनी आज्ञा न होत, तो जूदां जूदां एकादिक व्रतोना धार क श्रावकोने माटे पण जूदां जूदां प्रतिक्रमण करवां जोतां हता, परंतु ते तो कस्यां देखातां नथी. प्रतिक्रमणसूत्र तो मात्र साधु अने श्रावक ए बे श्राश्रयीज बे, ते पण एटला वास्ते जूदां , के अणुव्रतवाला साधुने जे वातनी मना करेली बे, तेवी वातोनुं जे श्रावके आचरण करवं तेनो प्रपंच कहेवा सारु श्रावकनुं प्रतिक्रमण जूई , तेथी ते विशेषे करी श्राव कने घणुं उपयोगमां आवे तेवू बे, ते माटें श्रावकना प्रतिक्रमणे करीनेज श्रावक प्रतिक्रमण करे . अहियां घणा हेतु तथा दृष्टांतो डे, परंतु प्र स्तावनाना विस्तारजयथी अधिक विलेखन कझुं नथी, माटें कोई पण प्रका रनी आशंका कख्या विना नमक जीवें षमावश्यकरूप प्रतिक्रमण,प्रतिदिव र उनयकालें अवश्य करवू; एज महानंदसंदोह हेतु जे.किं बहु विलखनेन. ॥ अथ पोसहपारवानो विधि ॥ ॥प्रथम इरियाव हियाए पमिकमी, श्वामि खमासमणो देश नाका रेण संदिसह जगवन् ! पोसह मुहपत्ति पडिलेडं ? एम बोली मुहपत्ति पनि लेहवी. तदनंतर श्लामिण श्लाका पोसह संदिसाडं वली श्च श्वाका संदि० पोसह गलं ? पली बे हाथ जोमी एक नवकार गणीने पोसहनुं पच्चरकाण करवू. श्वामिण श्वाका सामायिक मुहपत्ति पमिलेहुँ, त्यांथी ते सद्याय करूं, त्यां सूधी कही त्रण नवकार गणी पनी श्वामिण श्वास बहुवेल संदिसा हुं. श्छण् श्छा बहुवेल करशुं. श्वं श्छा पमिलेहण करुं ? एम कही मुहपत्ति पमिलेहवी. श्वामि० श्बाकारि लगवन् ! "पसाय करी पमिलेहणा पमिलेहावो. श्छामिण श्लाका उपधि मुहपत्ति पमिलेहुं ? एम कही मुहपत्ति पमिलेहवी. श्वामिण इलाका उपधि संदि साहुं ? श्छामि श्वाका उपधि पडि लेहुं श्वामिण श्वाका सघाय करूं? ए कही एक नवकार गणी मन्ह जिणाणंनी सजाय कहेवी, पोर अवसरें शरियावहिया पमिकमी श्वामि० श्छाका पमिलेहणा म कही मुहपत्ति पडिलेहवी. ॥ हवे सहु समद पोसह उच्चारवो, ते कहे ॥ त्या प्रमाणे सर्वे कहे, पण सद्याय न कहेवी. ने पढी राश हवी, वांदणां बे देवां. पडी राश्यं बालोठं ? एम कही Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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