SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८ प्रतिक्रमण सूत्र. स्थिति बे, माटें अक्षय स्थिति कहेवाय बे. बो ( रूवी के० ) रूपथकी रहित बे. उपलक्षणथी वर्ण, गंध, रस तथा फरसथकी पण रहित जा पियें. एटले सिद्ध पांच वर्णमांना एके वर्णों कहेवाय नहीं; वे गंधमां कोइ गंधनो सिद्धां संभव नथी; पांच रसमां एके रस सिद्धनेविषे न होय अने व स्पर्शमांनो एके स्पर्श सिद्ध न होय. एटले नामकर्मना - यथकी एउनो तादात्म्यसंबंध सिद्धनेविषे नहिं होवानेलीधे ए रूपी गुण कह्यो बे. सातमो (अगुरुल के० ) गोत्रकर्मनो दय थ जवाथी सिद्ध जारी पण नथी, तेम हलका पण नथी एटले ( गुरु ० ) सिद्ध नेउंच गोत्र न होय तथा ( लहु के० ) सिद्धने नीच गोत्र न होय एटले सिद्ध, कार्मिक सन्मान तथा सत्कार रहित होय बे, अर्थात् विषयता संबंधें करी खानाविक पूजा सत्कारें करी रहित बे ने मो (वीरिय के० ) अंतराय कर्मनो दय थवाथ की वीर्यांतरायना कयने लीधे सिद्धने स्वाजाविक आत्मानुं अनंत बल होय बे, ते बल एवं के लोकने लोकमां arrated लोकमां करी नाखे पण सिद्ध ते बलने फोरवे नहिं, फोव्यं पण नथी ने फोरवशे पण नहीं. कृतकृत्य थया बे माटें तादृश वी ने फोरवे नहीं. ए श्राव, सिद्धना गुण थया. वे चायना वीश गुणो श्रावी रीतें:- " पंचिंदियसंवरणो, तह नववि बंजर गुतिधरो ॥ चविह कसाय मुक्को, हारस गुणेहिं संजुत्तो ॥ १ ॥ पंच महवयजुत्तो, पंच विहायार पालण समो ॥ पंच स मिर्ज तिगुत्तो, बत्तीस गुणो गुरू मझ ॥ २ ॥” अर्थः- ( पंचिंदियसंवरणो ha) स्पर्शनेंद्रिय प्रमुख पांच इंद्रियो, तेर्जना स्पर्शादिक मुख्य पांच विपयो तथा ते विषयोना अवांतर देवीश नेदो थाय, तेमां जे पोताने अनु कूल प्रीतिकारी होय, तेउनी उपर राग न धरे ने जे प्रतिकूल प्रीति कारी होय, तेजनी उपर द्वेष न करे, ते माटे पंचेंद्रियना संवरयुक्त एम क एम प्रत्येक इंडियना विषयने विषे राग तथा द्वेषना अजावें रहे. ए प्रमाणें पांचे इंडियना विषयो विषे करता, पांच गुणो थया. (तह के ० ) तथा ( नव विवजचेर के० ) नव प्रकारनी ब्रह्मचर्यनी ( गुत्तिधरो के० ) तिने धारण करनार, तेमां प्रथम, गाय प्रमुख पशु, नपुंसक तथा स्त्री थकी रहित एवा स्थानकने विषे रहे. बीजुं, स्त्रीनी कथा, वार्त्ता, प्रीतियुक्त . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy