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________________ नवकारअर्थसदित. हित एकदा प्रस्तावें वनमा जतो हतो, तेने मार्गमां एक स्त्रीयें कडं के मुऊने हरण हणीने आणी आपो, बीजीयें कडं के मने अत्यंत तृषा लागी ने माटे पाणी लावी आपो अने वली त्रीजीयें कडं के मने गीतगान करी संजलावो. ए त्रणेने निहें कडं के, (सरो नथी) एम एक उत्तर कह्यो. त्यारे पहेली समजी के, सरो एटले बाण नथी. बीजी समजी के, सरो एटले सरोवर नथी. त्रीजी समजी के, सरो एटले मधुरवर नथी. एम एक उत्तरथी त्रणे स्त्रीयो समजी गइ, ए दृष्टांतें प्रजुनो वचनातिशय पण जाणवो. ए जिनेंनी वाणीना पांत्रीश गुणो बे, ते विस्तारना जयथी लख्या नथी.ए चार अतिशय,आठ प्रातिहार्य साथै मेलवतां श्रीतीर्थकरना बार गुणो थया. हवे सिझना आठ गुणो विवरीने कहे बेः-गाथा " नाणं च दंसणं चेव अवाबाहं तहेव सम्मत्तं ॥ अस्कयहि अरूवी, अगुरु लहु वीरियं हव” अर्थः-प्रथम (नाणं च के०) ज्ञानावरणीय कर्म दय थर जवाने लीधे ज्ञाननी उत्पत्ति थयाथी तेना प्रत्नावें लोकालोकना खरूपने विशेष प्रकारे जाणे जे. बीजो (दंसणंचेव के0) दर्शनावरणीय कर्मनो दय थई जवाथी केवल दर्शननी उत्पत्ति थवाने लीधे तेना योगें लोकालोक स्वरूप नली प्रकारें देखे , त्रीजो (अवाबाहं के०) सर्व प्रकारनी बाधा पीमाथकी रहित, एटले वेदनीय कर्म कय थई जवाथी नैरुपाधिक अनंत सुखनी उत्पत्ति थाय बे. ते सुख आq डे केः-व्यवहारीयानां सुख, राजा नां सुख , बलदेवनां सुख, वासुदेवनां सुख, चक्रवर्तीनां सुख, असंख्याता जवनपति, व्यंतर तथा ज्योतिष्क देवोनां सुख, बार देवलोकना देवतानां सुख, नव प्रैवेयकना देवतानां सुख, पांच अनुत्तर विमानवासी देव, ए सर्वनां सुख तेथकी अनंतगणुं अधिक सुख, सिझना जीवोने जे. ते सुखनो अनुनव सिझ विना बीजा कोश्ने पण थक्ष शके नही. जेम मूगो साकर खाय, तेनो स्वाद पोतें जाणे पण बीजाने कही शके नहीं, तेम सिझना सुखने केवलज्ञानी जाणे , पण ते सुख वचनातीत , माटें मुखथी कही शके नहीं. चोथो (तहेव सम्मत्तं के०) तेमज मोहनीय कर्मनो दय थर जवाने लीधे दायिक सम्यक्त्वनी उत्पत्ति थाय , ते सिझने विषे यथाव स्थित होय . पांचमो (अस्कयहिश के०) आयुः कर्मनो क्षय थ याथी अक्षय स्थिति थाय बे. सिझना जीवने पर्यायवडे सादि अनंत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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