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________________ ३५६ प्रतिक्रमण सूत्र. श्रावे के साधु तो उ घमीनी पोरिसी नणे , तेवारें पूर्वली रीतें तेमज बे सी रहे, तो पच्चरकाण नांगे नहीं. ए पाबला बे आगार व्रमतानां . बहुं (सबसमाहिवत्तियागारेणं के०) सर्व प्रकारे शरीरमां असमाधि रहे, एटले पच्चरकाण कत्या पनी तीव्र शूलादिक रोग उपने थके अथवा सादिकें मश्यो होय, ते वेदनाथी जीव आर्तिमां पडे, अथवा जेवारें श्रकस्मात् कष्ट थाय, तेवारे सर्व इंजियोनी समाधिने अर्थे अपूर्ण पच्चरकाणे पण पथ्य औषधादिक लेवां पडे तो तेथी पञ्चरकाण जंग न थाय, अने समाधि थया पठी तेमज पाबलो विधि करे. इहां पण गुरु वोसिरे, कहे अने शिष्य जे पच्चरकाणनो करनार ते वोसिरामि कहे. ए पञ्चकाणमा मुछिसहिरं साथें लीधुं वे, तेथी महत्तरागारेणं ए आगार वध्यो बे, तेनो अर्थ आम बे, के (महत्तर के०) महोटे कार्ये एटले जेटलो पच्चरकाणमां निरानो लाल थाय बे, ते करतां पण अत्यंत महोटो निर्जरानो लान जे कार्यमां थतो होय, अर्थात् कोर ग्लान, प्रासाद, संघ अथवा देवना वैयावच्चने अर्थे को बीजा पुरुषथी ते कार्य न थश् शकतुं होय, त्यारें गुरु तथा संघना आदेशथी मुहिसहियंनो वख त पूर्ण थया विना पण जो पालवामां आवे, तो पच्चरकाणनंग न थाय. अने ते कार्य पूर्ण थया पड़ी पाबलोज विधि समजवो ॥३॥ ॥अथ पुरिम अवहनु पच्चरकाण ॥ ॥ सूरे जग्गए नमुक्कारसहिअं पुरिमढ मुसिदिअं पच्चरकाश्. सूरे जग्गए चनविपि आहारं असणं पाणं खाश्मं साइमं अन्नबणानोगेणं सहसागरेणं पबन्नकालेणं दिसामोदेणं साहुवयणेणं महत्तरागा रेणं सबसमादिवत्तियागारेणं वीसिरे ॥ ४ ॥ अर्थः-(सूरेजग्गए के०) सूर्यना उदयथी मामीने (पुरिमलु के०) पहे, ला प्रहर सुधी पुरिमा कहियें, अने जो अवढनु पञ्चरकाण लेवु होय, तो उपर सूत्रमा अवहy नाम कहियें अवह एटले त्रीजा प्रहर सुधी अशनादि क चार थाहार पञ्चकुंडं, एना आगारोना अर्थ प्रथम लखा गया ३ ॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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