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________________ दशविधपच्चरकाण अर्थसदित. ३५५ वखत ते माया बे पगप्रमाण होय ते वखत पोरिसिकहीये. तेवार पठी महीना पर्यंत मास मासनी संक्रांतियें चार चार आंगुल वधारता जश्ये, तेवारें पोष मासनी मकर संक्रांतियें चार पगनी बायायें पोरिसी थाय. तेवार पड़ी वली मास मासनी संक्रांतियें चार चार आंगुलनी हानि करियें, तो फरी आषाढ महीने बे पगनी बाया थाय, तेमज आश्विन अने चैत्रमासें त्रण त्रण पगनी गया जाणवी, तथा तेवीज रीतें अषाढनी संक्रांति थकी सात दिवसें एक अंगुल अने पखवाडे बे अंगुल बायानी वृद्धि करवी, अने पो षमासनी संक्रांतिथकी सात दिवसें एक अंगुल अने पखवामीये बे अंगुल यानी हानि करवी, तेम महिने चार अंगुलनी हानी वृद्धि करवी, एटले पोरिसी एक प्रहरनी थइ. अने मुछिसहिअंनो अर्थ तो पूर्वे लख्यो ने, (असणंपाणंखाश्मंसाश्मं के०) अशन, पान, खादिम अने स्वादिम, ए चार प्रकारना आहारनो नियम करूं बुं. हवे आगार कहे , एक (श्र नबणानोगेणं के०) अनानोगे ते अजाणते विसारवा थकी, वीजो (स. हसागारेणं के०) सहसात्कारें. त्रीजो (पबन्नकालेणं के०) कालनी प्रचनता ते मेघादि, ग्रहादि, दिग्दाह, रजोवृष्टि तथा पर्वत अने वादल प्रमुखें करी सूर्य ढंका जाय तेणें करी वखतनी बराबर खबर न पडे एवां अजाण पणायें करी अधूरी पोरिसिये पण पोरिसि पूर्ण थक्ष, एवं समजी ने पच्चकाण पालवामां आवे. तो तेथी नंग नहीं, अने कदापि ए रीतें अधूरी पोरिसियें जमवा बेग एटलामां तावमो जोयो, अने जाएयु जे हजी सवार बे, पोरिसिनो वखत पूर्ण श्रयो नथी, तेवारें जे मुखमां कोलीयो होय, ते राखमां परवीने बेसी रहे, अने यावत् पोरिसि पूर्ण थया पड़ी जमवा बेसे, तो पच्चरकाण नांगे नहीं.. चोथो ( दिसामोहेणं के०) दिशिने मूढपणे एटले दिशिविपर्यास थ याथी अजाणते पूर्वने पश्चिम अने पश्चिमने पूर्व करी जाणे. एम अजाणतां वहेलु पलाय तो पच्चरकाण जंग नहीं, अने यो जम्या पली कोश ना कह्याथी जाणवामां आवे तो मुखमांनो कोलीयो बूंकी नाखे. ए रीतें दिङ्मोह टल्या पडी, अऊ जम्यो बेसी रहे तो जंग नहीं. पांचमो (साहुवयणेणं के०) 'उध्घाम पोरिसि' एवा साधुना वचनें करी पो रिसि जणी, सांजलीने पाले, तो पच्चरकाण नंग नहिं, पठी ज्यारे जाणवामां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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