SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 369
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दशपच्चरकाण अर्थसहित. ३४ए के ) मन जे , ते ( प्रसन्नतां के०) प्रसन्नताने ( एति के) पामे डे, अ ने ( उपसर्गाः केप) उपसर्गो ( दयं यांति केण) दयने पामे ॥४॥ सर्वमंगलमांगल्यं, सर्वकल्याणकारणम् ॥प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् ॥ ५॥ इति ॥॥ अर्थः-(सर्वमंगल के०) सर्व लौकिक मंगलपदार्थ तेने विषे (मांगल्यं के०) मंगल करनारुं तथा ( सर्वकल्याणकारणं के० ) संपूर्ण आरोग्यतानुं कारण, ( सर्वधर्माणां के ) सर्वधर्मोने विषे (प्रधानं के०) श्रेष्ठ एवं (जै नं के) जिनसंबंधि ( शासनं के) शासन ते ( जयति के०) सर्वोत्कृष्ट वर्ने ३ ॥५॥ इति बृहबांतिनामकं नवमस्मरणं समाप्तम् ॥ ए॥ ॥अथ प्रत्याख्यानाधिकारप्रारंनः ॥ हवे गुरुवंदनाना अधिकारमध्ये पच्चरकाण घणा विस्तार नणी कह्यां नहीं, ते जणी हमणां वखाणीयें बैयें. ते पञ्चरकाण वे नेदें , एक मूल गुण पच्चरकाण, बीजु उतरगुण पच्चरकाण. तिहां मूलगुण पञ्चरकाण वली बे नेदें , एक देशथी, बीजुं सर्वथी, तेमां सर्वथी मूलगुण पञ्चकाण जे पंच महाव्रतरूप, ते तो साधुने होय, अने देशथी मूलगुण पच्चरकाण पंच अणुव्रतरूप श्रावकने होय, तेमज उत्तरगुण पच्चरकाण पण देशथी अने सर्वथी एवा बे नेदें , तिहां साधुने सर्वथी उत्तरगुण पच्चरकाण जे ,ते पिंमविशुझि, पांच समिति, बार नावना, बार प्रकार, तप, बार प्रतिमा अनिग्रह, ए आदें देश्ने अनेक प्रकारें , तथा श्रावकने देशथी उत्तर गुण पच्चरकाण जे जे, ते सात शिदाबत प्रमुखरूप ले. हवे पहेलु पमिकमणुं करतां उ मासी तपना काउस्सगमांहे जे आज अमुक पञ्चकाण करगुं, पढ़ी चौद नियम यथाशक्तियें ले गुरुमुखें पञ्च रकाण उच्चरे, अने जो गुरु प्रत्यद न होय तो स्थापनाचार्य समद, अथ वा देवपूजा करे,तेवारें देवनी समद पच्चरकाण उच्चरे, अने जो प्रजातनुं पमिकमणुं गुरु मांगले, पोशालें न की, होय, तो उपाशरे जश् गुरुने पगे बे वांदणां दश् गुरुमुखें अथवा गुरुने आदेशेकोश्साधुने मुखें पञ्चरकाण करे. ___ अहींयां गुरु अने पच्चरकाणना लेनार श्रावक आश्री चार नांगा उप जे , ते कहे . एक तो गुरु पण पच्चरकाणनो जाण, अने श्रावक पण Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy