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बृहबांतिस्तव अर्थसहित. ३४५ नाथ, (मे के०) मने ( शांति के० ) फुःखरितोपशांतिने (दिशतु के०)
आपो. कारण के (येषां के०) जमना (गृहे के०) घरने विषे (गुरुः के) यथार्थोवदेशना करनार एवा ( श्रीमान् के०) सुशोनित एवा ( शांतिः के०) श्रीशांतिनाथनामा जे जिन तेनुं पूजन थाय , ( तेषां के०) ते मना (गृहे के० ) घरने विषे ( सदा के ) निरंतर ( शांतिरेव के) शांतिज थाय ॥२॥ हवे श्री शांतिनाथना केवल नामग्रहण मात्रनुं माहात्म्य कहे जे.
जन्मृष्टरिष्टउष्ट, ग्रहगतिःस्वप्ननिमित्तादि ॥
संपादितदितसंप, नामपदणं जयति शांतेः॥३॥ अर्थः-(शांतेः के०) श्रीशांतिनाथर्नु (नामग्रहणं के) नामग्रहण पण (जयति के०) उत्कृष्ठ वर्ने बे. सेवातत्पर सेवकोने सुखश्रेयस्कारक एवं वर्ते . हवे ते नामग्रहण केहबुं बे? तो के (उन्मृष्ट के ) दूर करयां ले (रिष्टपुष्टग्रहगति के०) उपजव तथा उष्ट एवी अंगारकादि ग्रहनी गति, तथा (छुःस्वप्नपुर्निमित्तादि केण) खर, उंट, महिषादिक, देखq तथा प्रह, नदी, समुसादिमां पम्वु तथा व शिरनु पम, इत्यादिक फुःस्वप्न जे उखोनां कारण ले तेने, अने वली केहबुं ? तो के ( संपादित के) संपादन करी ले (हितसंपत् के०) हितनी संपत्ति जेणे एवं ॥३॥
हवे शांतिनो उद्घोषविशेष कहे डे श्रीसंघजगजनपद, राजाधिपराज्यसन्निवेशानाम् ॥
गोष्ठिकपुरमुख्यानां, व्यादरणैादरेबांतिम् ॥४॥ अर्थः-(श्रीसंघजगजनपदराजाधिपराज्यसन्निवेशानां के०) ए सर्वना (व्याहरणैः के०) नामग्रहणे करीने तथा ( गोष्ठिकपुरमुख्यानां के०) गो ष्ठिकपुरप्रमुख जे नगरना मुख्य पुरुष तेना पण ( व्याहरणैः के०) उपक रण नामसंग्रह तेणें करीने एटले ए सहुना नाम लश् लश्ने (शांतिं के) शांति जे तेने (व्याहरेत् केण) उंचे स्वरें करीने उद्घोषणा करे॥
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