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________________ कल्याणमंदिरस्तोत्र अर्थसहित. ३३३ ( अस्मिन् के० ) आ ( अपारजववारिनिधौ के० ) नथी पार जेनो एवो जे संसाररूप पाणीनो समुन, तेने विषे तमें ( मे के०) महारा (श्रवण गोचरतां के०) कानना विषय ते प्रत्ये ( न गतः के ) न प्राप्त थयेला एवा (असि के०) बो, एटले में था संसार समुज्ने विषे तमोने को वारें पण सांजल्या नथी. एज वातने समर्थन करे बे, ते जेम के:-(वा के०) अथवा जो (तव के०) तमारा (गोत्रपवित्रमंत्रे के० ) नामरूप जे पवित्र मंत्र ते (आकर्णिते तु के०) श्रवण करे बते पण (विपहिषधरी के०) श्रा पदारूप जे सर्पिणी ते (किं के ) शुं ( सविधं के ) समीप. ( समे ति के ) आवे ? अर्थात् तमाळं नाम सांजव्या पड़ी तो आपदा आवे नही अने मने तो आ संसाररूप आपत्तियो आवेली बे, तेथी एम मार्नु बुं, के में पूर्वनवोने विषे क्यारे पण तमारु नाम सांजदयु नथी ॥ ३५ ॥ जन्मांतरेपि तव पादयुगं न देव!, मन्ये मया मदि तमदितदानददम् ॥ तेनेह जन्मनि मुनीश! परान वानां, जातोनिकेतनमदं मथिताशयानाम् ॥ ३६॥ अर्थः-(देव के०) हे देव! (मन्ये के०) हुँ मानुं बु, संजावना करुं बु के (मया के०) में (जन्मांतरेपि के०) जन्मांतरने विषे पण (तव के०) तमा रु (पादयुगं के) चरणयुगल जे जे तेने (न महितं के) नथी पूज्युं, ते चरणयुगल केहबु बे ? तो के (इहित के०) वांछित तेनुं जे ( दान के०) देवं तेने विषे (ददं के) चतुर एवं बे, हवे तेज कहे . जे (मुनीश के०) हे मुनीश ! ( तेन के ) तेकारण माटें (अहं के०) हुँ (श्ह के) श्रा (जन्मनि के०) जन्मने विषे ( मथिताशयानां के० ) मथन कस्यो डे चित्तनो आशय जेमणे एवा (परानवानां के५) परानवो जे तेमनुं (निके तनं के०) स्थानक (जातः के०) थयो, अर्थात् तमारा चरणारविंदनो पू जक, परानव- स्थानक होतो नथी, परंतु में पूर्व नवोने विषे तमारां च रविंद क्यारे पण पूज्यां नथी, एम नासे ॥ ३६ ॥ नूनं न मोदतिमिरातलोचनेन, पूर्व विनो! सकृ. दपि प्रविलोकितोऽसि ॥मर्माविधो विधुरयंति दिमा मनाः , प्रोद्यत्प्रबंधगतयः कथमन्यथैते ॥ ३७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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