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कल्याणमंदिरस्तोत्र अर्थसदित. तेना (कलाप के) समूह, तेणें करी (कलित के०) सहित अने (उन्नास त के०) उबसित एवा जे (आतपत्र के) त्रण बत्र तेना (व्याजात् के०) मीशें करीने ( तारान्वितः के ) तारामंडल सहित बतो (ध्रुवं के) निश्चयथकी (विधा के०) त्रण प्रकार- (धृततनुः के) धारण कस्युं शरीर जेणे एवो (विधुः के०) चंद्रमा जे बे, ते तमारी सेवाकर वाने अर्थे जाणियें (अन्युपेतः के०) तमारी पासे आव्यो होय नहीं? ते चंडमा केहवो थको आव्यो ? तोके (विहताधिकारः के०) विशेषे करी ने हणाणो ने जगत्ने विषे विद्योत करवारूप अधिकार एटले व्यापार जेनो एवो . ते व्यापार शा वास्ते हणाणो ? तो के (नवता के० ) तमोयें (जुवनेषु के०) त्रण नुवन जे ते (उद्योतितेषु के०) प्रकाशित करे डे ते एटले तमें जगत्नो प्रकाश कस्यो, तेवारें चंजमाने प्रकाश करवानो थ धिकार विफलीजूते थयो ॥ २६ ॥ हवे रत्नादिनिर्मित वप्रत्रयने विषे मध्यस्थायिपणुं तथा देवें वंद्य त्व एवा लोकोत्तर अतिशयघ्यने काव्यध्ये करीने कहे .
स्वेन प्रपूरितजगत्रयपिमितेन, कांतिप्रताप यशसामिव संचयेन ॥माणिक्यमरजतप्रवि
निर्मितेन, सालत्रयेण लगवन्ननितोविनासि ॥॥ अर्थः-(जगवन् के०) हे जगवन् ! तमें (अनितः के०) चारे पासें (मा णिक्य के०) नील रत्न अने (हेम के०) सुवर्ण तथा (रजत के०) रू, ते में करीने (प्रविनीर्मितेन के०) प्रकर्षे करीने वीनिर्मित करेलो एवो जे(सा लत्रयेण के०) त्रण गढ, त्रिगडो गढ तेणें करीने ( विनासि के) शोजो बो, बिराजो बो, एटले एक गढ रत्नमय, बीजो सुवर्ण मय, अने त्रीजोरौप्य मय, एवा त्रण गढ़ें करीने तमें शोचो बो, ते केनी पेठे शोनो गे? तेनी उपर कवि उत्प्रेदा करे बे, ते जेम केः-(खेन के०) पोतानां ऐटले प्रनु नां (प्रपूरित केप) प्रकर्षे करीने पूडं बे (जगत्रय के०) त्रण जगत् जेणे तेणें करी (पिंमितेन के०) पिंमीनूत थश्ने रह्यां एवा ( कांति के ) शरीरनो वर्ण अने (प्रताप के०) प्रताप तथा (यशसां के० ) यश तेमना ( संचयेन के ) संचयें करीनेज एटले समूहें करीनेज (श्व के ) जा
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