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________________ १४ प्रतिक्रमण सूत्र नेरि उत्तं, जयति जिण पामिहेराइं ॥१॥” अर्थः-जगवंतने सहचारि होय माटे प्रातिहार्य कहिये,अथवा इंजना आदेशकारी जे देव तेनुंजे कर्म, तेने प्रातिहार्य कहीये. ते आठे प्रातिहार्य, देवतानां करेलां जाणवां. तिहां पहेलु १ (किंकिति के०) अशोकवृद, ते ज्यां श्रीनगवंत विचरे, समोसरे, तिहां महाविस्तीर्ण, कुंसुमसमूहबुब्धत्रमरनिकरें शीतल, सबाय, मनो हर, विस्तीर्णशाखावालो, नगवाननु जेटवू देहमान होय तेथी बारगुणो, अशोकवृद, देवता करे, तेनी नीचे बेसीने धर्मदेशना जगवान् आपे. - २ (कुसुमति के०) फूलनी वृष्टि एटले जल तथा स्थलने विषे उत्पन्न थयेलां फूलो जेवां के श्वेत, रक्त पीत, नील तथा श्याम, ए पांच वर्णानां विकश्वर सरस सुगंधमय, नीची बीटें अने ऊंचे मुखें एवां सचित्त फूलो नी वृष्टि समवसरणनी पृथिवीने विषे चोफेर एक योजनमध्ये गोठण प्रमाण देवतार्ड करे , अहींयां फूल विषे मतांतर बे, ते कहे बेः-कोश एक तो अचित्त फूल कहे जे तथा को एक तो किहां एक फूल उपर जाली बंध कहे . वली को एक तो क्या एक क्यारारूप में, एटले ज्यां साधु, मनुष्य अने देवता बेसे , त्यां पुष्पवृष्टि नथी अने शेष चोफेर स्थानके बे, ऐम मतांतर जे. परंतु ते मध्ये अचित्त फूलना कथक तो धर्मतिजिन वचनना उबापक एवा ढूंढक लोको जाणवा, अने शेष बे मतांतरनो पण निषेध बे, केम के समवसरणमां सर्वत्र फुलनी वृष्टि तो होयज बे, पण ते फूलोने जे बाधा नथी उपजती तेनुं कारण तो अचिंत्य शक्तिना धणी एवा श्रीनगवंतनुं माहात्म्य जाणवू. एम श्रीश्रावश्यक चूर्णीमध्ये कयु बे. तेनी श्रीआवश्यक नियुक्तिनी वृत्ति, श्रीमलयगिरिमहाराजनी करेली , तेमां साख दीधी , माटे पुष्पवृष्टि समवसरणमध्ये सर्वत्र देवता करे . .. ३ ( देव णि के) दिव्यध्वनिः एटले नगवान् जेवारें दूध साकरथी पण मीगशवाला अत्यंत मधुर स्वरवडे सरस अमृतरससमान समस्त लोकने प्रमोदनी देवा वाली एवी वाणीयें धर्मदेशना दीये जे. तेवारें देव ताठ ते जगवंतना खरने पोताना ध्वनिवडे अखंग पूरे . यद्यपि मधुर मां मधुर पदार्थथकी पण प्रजुनी वाणी मध्ये रस घणो , तोपण नव्य जीवना हितने अर्थे प्रजुजी जे देशना आपे बे, ते मालवकोश रागें करीनेज आपे बे, अने ते मालवकोश रागें जेवारें देशना आलापे, तेवारें पर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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