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________________ ३०६ प्रतिक्रमण सूत्र. अचानक (संमुखं के०) सन्मुख (आपतंतं के० ) आवी प्राप्त थयो तेने (त्वन्नामकीर्तनजलं के०) तमारा नामनुंजे कीर्तन करवू, ते रूप जल ते (श्र शेषं के०) निरवशेष एवा अग्निने (शमयति के०) शांत करी मूके . एटले विश्वने बाली नाखवानीछा करनारो एवो जे दावाग्नि, ते पण तमारा नाम स्मरणरूप जलें करीने शांतताने पामे डे, एवो तमारा कीर्तननो प्रजाव , तेवारें तमारी आज्ञादिक पालवाथी शुं सर्वोत्कृष्टता प्राप्त न थाय ? ॥३६॥ हवे उरगनय निवारण करतो तो कहे . रक्तेदाणं समदकोकिलकंठनीलं, क्रोधोतं फणिन मुत्फणमापतंतम् ॥ आक्रामतिक्रमयुगेन निरस्त शंक, स्त्वन्नामनागदमनी हृदि यस्य पुंसः॥३७॥ अर्थः-( रक्तेक्षणं के ) रातांबे नेत्र जेनां एवो अने (समद के) मदोन्सत्त एवो तथा ( कोकिल के) कोकिल तेनो (कंठ के० ) कंठ तेना सरखो ( नीलं के०) श्यामवर्णवालो एवो अने (क्रोधोकतं के०) क्रोधे करीने उकत थयेलो तथा (उत्फणं के०) उंची करेती ने फणा जे ऐं एवो जे (फणिनं के०) सर्प ते (आपतंतं के०) उतावलो सन्मुख श्रावतो होय तेने पण (निरस्तशंकः के०) शंका रहित थयो थको पो ताना (क्रमयुगेन के०) चरणयुगलें करीने (श्राकामति के०) उलंघन करे . ते कयो पुरुष उलंघन करे ? तो के ( यस्य के) जे (पुंसः के ) पुरुषना ( हृदि के ) हृदयने विषे (त्वन्नाम के०) तमारा नाम रूप जे (नागदमनी के ) नागदमनीनामें औषधि नरेली बे, ते तमारा नामरूप नागदमनी औषधियें करीने उग्र सर्पना जयथकी पण निःशं कित थाय ने ॥३७॥ हवे रणजयापहरण करतो बतो कहे . वलगत्तुरंगगजगर्जितनीमनाद, माजौ बलं बल वतामपिपनूतीनाम् ॥ उद्यदिवाकरमयूखशिखाप विई, त्वत्कीर्तनात्तमश्वाशु निदामुपैति ॥ ३ ॥ अर्थः-जे (श्राजौ के० ) संग्रामने विषे (वल्गत् के०) युद्ध करता Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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