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नक्तामरस्तोत्र अर्थसहित. ३०१ के) अत्यंत (अमलं के) निर्मल (आजाति के०) शोने जे. त्या दृष्टांत कहे , के (स्पष्टोलसत्किरणं के) प्रगट उंचां गयेला डे किरणो जेनां एबुं (रवेः के) सूर्य जे तेनुं (बिंबं के०) बिंब जे , ते (पयोधर के) मेग, तेना (पार्श्ववर्ति के०) पार्श्वमां वर्त्ततुं एटले पासे रघु थकुं (श्व के०) जेम होय नहिं ? एटले सूर्य पोतानां प्रकाशित किरणो वडे करीने (अस्ततमोवितानं के) अंधकारना समूहने अस्त करी नाखीने एटले नाश करीने शोजाने पामे , तेम तमें अशोकवृदनी नीचें बेग थका शोजाने पामो डो॥२॥
हवे वली पण जगवंतना शरीरनुं वर्णन करे ने. सिंहासने मणिमयूखशिस्वाविचित्रे, विभ्राजते तव वपुः कनकावदातम् ॥ बिंबं वियलिसदंशुलता वितानं, तुंगोदयानिशिरसीव सहस्ररश्मेः ॥२॥ अर्थः-दे देव ! (मणि के) मणियो तेनां (मयूख के) किरणो, तेनी (शिखा के० ) पंक्तियो, तेणे करीने (विचित्रे के) चित्र विचित्र एवं (सिंहासने के०) सिंहोपलक्षित श्रासन, तेने विषे (कनक के०) सुवर्ण तेना सर (श्रवदातं के०) मनोज्ञ एवं (तव के ) तमारं वपुः के) शरीर, ते (वित्राजते के) विशेषे करी शोने . त्यां दृष्टांत कहे बेः-(तुंगं के०) उंचो एवो जे (उदयाति के०) उदयाचल पर्वत तेना (शिरसि के०) शिर उपर जे (वियत् के०) आकाश तेने विषे जेनां ( विलसत् के०) उद्योत मान (अंशु के० ) किरणो तेनी (लता के ) शाखा तेनो ( वितानं के० ) समूह ने जेने एवो (सहस्ररश्मे के ) सूर्य जे तेनुं (बिंबं के) बिंब ते (श्व के०) जेम शोजाने पामे डे, तेम प्रजुनुं शरीर सिंहासन उपर शोजाने पामे वे ॥॥
हवे फरी पण प्रकारांतरें नगवानना शरीरनुं वर्णन करे . कुंदावदातचलचामरचारुशोनं, विज्राजते तव वपुः कलधौतकांतम् ॥ उद्यबशांकशुचिनि:रवारिधार,
मुच्चैस्तटं सुरगिरेरिव शातकौंनम् ॥ ३०॥
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