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________________ नक्तामरस्तोत्र अर्थसदित, २५३ चलायमान न कस्यो. तेम देवतानी स्त्रीयोयें पण बीजा हरिहरादिक देवोने तो चलायमान कस्या; परंतु तमोने दोन पमामी शकीयो नही॥१५॥ हवे जगवानने दीपनी उपमानी व्यर्थता कहे डे. निमवतिरपवर्जिततैलपूरः कृत्स्नं जगत्रयमिदं प्रकटीकरोषि ॥ गम्यो न जातु मरुता चलताचला नां, दीपोऽपरस्त्वमसि नाथ! जगत्प्रकाशः॥१६॥ अर्थः-(नाथ के०) हे नाथ ! (त्वं के०) तमें (अपरः के०) विलक्षण ए वो बीजोज (जगत्प्रकाशः के०) जगत्प्रकाशक रूप (दीपः के०) दीपक (असि के) बो. ते केवी रीतें बो ? त्यां कहे जे. (निझमवर्तिः के) नि र्गत एटले गयो ने हेषरूप धूम्र अने वर्ति एटले कामवशतारूप वाट्य जेथकी एवा अपूर्वदीपक तमें बो. अने बीजा लौकिक दीपक जे बे. ते तो धूम्र अने बत्ती तेणें करी सहित होय , वली तमें केहवा दीपक बगे ? तो के (अपवर्जिततैलपूरः केर) अपवर्जित थयो ने स्नेह प्रकाशरूप तैलनो पूर जेथकी एवा दीपक बो अने बीजा लौकिक दीपक तो तैलपूरे करी सहित होय . वली तमें केहेवा दीपक बो? तो के (इदं के०) आ (कृ. त्वं के०) समग्र (जगत्रयं के०) त्रण जगतने (प्रकटीकरोषि के०) प्रगट करो बो, एटले केवलज्ञानरूप उद्योतें करी प्रकाश करो डो, अने लौकि क दीपक तो केवल गृहमात्रनेज प्रकाशकारक जे. वली तमें दीपक जे बगे, ते केहवा बो? तो के (अचलानां के०) पर्वतोने (चलता के०) चलायमा न करतो एवो (मरुता के०) वायरो जे , तेणें करीने (जातु के०) क्या रें पण ( गम्यः के० ) जावा योग्य (न केu) नहिं बो, अने लौकिक दीप क जे , ते तो पवनथकी जावा योग्य ३ ॥ १६ ॥ ___ हवे प्रजुने सूर्यसाथै उपमानी व्यर्थता कहे डे, नास्तं कदाचिऽपयासि न राहुगम्यः, स्पष्टीकरोषि सहसा युगपजगंति ॥नांनोधरोदरनिरुक्ष्मदापना वः, सूर्यातिशायिमहिमासि मुनीं, लोके ॥ १७ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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