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________________ प्रतिक्रमण सूत्र. तेने पण ( सुहनंदि के०) सुखवृद्धिने ( दिसउ के०) आपो. (य के०) वली (मम के०) मुझने (संजमे के०) सत्तर प्रकारनो जे संयम तेने विषे (नंदि के०) आनंदने (दिसड के) आपो ॥३७॥ आगाथा बंद . अहींयां केटलाएक वृद्ध पुरुष एम कहे डे के श्रीशत्रुजयनी गुफायें श्री अजित,अने शांति चोमासुंरह्या हता,पबीते बन्ने तीर्थंकरना पूर्वाभिमुख देरां थयां. तिहां एकदा श्रीनेमिनाथना गणधर, श्रीनंदिषण सूरि तीर्थयात्रायें आव्या थका श्रीअजित शांतिस्तवननी रचना कीधी, ते थाही सुधी जाणवी. हवे एना माहात्म्यनी आगली गाथा अनेरा बहुश्रुतें कीधी बे, ते वखाणीये कैयें. परिक चाजम्मासे, संवरिए अवस्स नणिअबोसो अबो सवेदि, उवसग्ग निवारणो एसो॥३७॥ गाहा ॥ अर्थः-(परिका के०) पांखीना पमिकमणाने विषे तथा (चाउम्मासे के०) चोमासाना पमिकमणाने विष तथा (संवछरिए के०) संवत्सरीना प मिकमणानी रात्रिने विषे (अवस्स के०) निश्चे (नणिअबो के०)जणवो, ते एक जणें नणेलो एवो जे आ स्तव, तेने (सोहि के०) सर्व संधे (सोअबो के०) सांजलवो. कारण के सर्वजनो जो एकज अवसरें एकग पाउनणे तो तेमां कोलाहल थवानो संचव डे मात्रै एकज जणे जणवो अने वीजा सर्व संघ जनोयें सांजलवो. (एसो के०) ए स्तव जे ने ते, (उवसग्गनिवारणो के) उपसर्ग जे विघ्न, तेनुं निवारण करनारो ने ॥ ३० ॥ गाथाबंद. जो पढइ जो अ निसुण, उन्न कालंपि अजिअ संति थयं ॥ न हु हुँति तस्स रोगा, पुबुप्पन्ना विना संति ॥ ३ए॥ गादा॥ अर्थः-(जो के०) जे कोई पुरुष, (अजिअसंतिथअं के० ) श्रीअजि तनाथ श्रने श्रीशांतिनाथ तेना स्तवनने ( उनकालंपि के०)प्रातःकाल तथा सायंकाल अने अपि शब्द थकीत्रणे काल सेवा तेने विषे ( पढश् के) नणे , तथा ( जोश के०) जे. वली ( निसुण के) निरंतर श्र वण करे , तो ( तस्स के०) ते पठन करनार अने सांचलनार पुरुषने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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