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________________ अजितशांतिस्तव अर्थसहित. यए अर्थः-(पुरिसा के ) हे मनुष्यो ! (जइ के०) यदि एटले जो तमें (उकवारणं के) फुःख, प्रतिषेधन करवू,तेने (विमग्गहके) विमार्गयथ, एटले खोलो बो, अर्थात् शोधवांडो डगे, अने (अ केश) वली (जश्के) यदि एटले जो (सुस्ककारणं के०) सुखनुं कारण एटले हेतु तेने पण विमग्गह एटले खोलो बो, शोधो बो, तो (अजिअं के) श्रीअजितनाथy (च के०) तथा (संति के०) श्रीशांतिनाथ तेमनुं ( सरणं के०) शरण जे त्राण तेने (नाव के०) नाव नक्तियें करीने, परंतु अव्ये करीने नहीं एवं सूचन करवाने अर्थे नाव ए शब्द ग्रहण कस्यो . (पवजाहा के) प्राप्त था. ए बेहु तीर्थंकर केहेवा ? तो के (अजय के) निर्जय तेने (करे के०) करे एवा वे ॥ ६॥ श्रा, मागधिका नामा बंद जाणवो ॥ एम बेहु तीर्थंकरनी स्तवना करीने हवे अनुक्रमें एकेक तीर्थंकरनी स्तुति करे . तेमां पण प्रथम श्रीअजितनाथने स्तवे . अर र तिमिर विरहिअ मुवरय जर मरणं, सुर असुर गरुल जुयग वश्पयय पणिवाअजिअ मद मविप्र सुनय नय निनण मन्नयकरं, सरण मुअसरिअ जुवि दिविज मदिरं सययमुवणमे ॥ ७ ॥ संगययं अर्थः-(अरश केण) संयमने विषे अरति अने ( र के० ) असंयमने विषे रति एटले समाधि तथा ( तिमिर के ) अज्ञान, तेणें करी ( विर हिब के ) विरहित एवा, अथवा अरति ते मोहनीयउदयथकी उपन्यो जे चित्तोडेग अने रति ते मोहनीयोदयथकी उपनी जे चित्तानिरति, ते बेहु सम्यक् ज्ञानने आछादन करनारी , ते रूप तिमिर जे अंधकार, तेणें करी विरहित , अने वली (उवरयजरमरणं के०) उपरत एटले निवृत्ति पाम्यां ने जरा अने मरण जेनां अथवा ( उवरयजरं के ) उपरत ठे जरा जेने तथा वली (अरणं के ) नथी रण ते युझादिक क्लेष जेने एवा, वली (सुर के०) वैमानिक देवो, ( असुर के ) नवनपति, (गरुल के ) सुवर्णकुमार, (नुयग के ) नागकुमार, तेना (व के० ) पति जे इंझो उपलदणथकी अन्य देवोना पण इंस्रो लेवा. तेमणे (पय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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