SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 275
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अजितशांतिस्तव अर्थसहित. वेरेला अदरोयें करी “नमिळणपासविसहरवसह जिणफुलिंग” ए (अहा रसअकरेहिं के०) अढार अदरोयें करीने (जो के०) जे चिंतामणिनामा गुप्त ( मंतो के ) मंत्र , तेने ( जो के) जे (जाण के०) गुरु उपदे शथकी जाणे , (सो के० ) ते, तेवा मंत्रे करीने (पासं के०) पार्श्वनाथने (काय के०) श्रीमंत्रमय पार्श्वप्रजुनुं ध्यान करे , ते केहवा श्री पार्श्व नाथ ? तो के ( फुडं के ) प्रगटध्यान स्वरूपें करीने (परम के०) उ त्कृष्ट एवं ( पयलं के० ) पद जे स्थानक तेने विषे रहेनारा ३ ॥ ३ ॥ पासद समरण जो कुणश, संतुझे दियएण ॥ अछुत र सय वादि नय, नास तस्स दूरेण ॥ २४ ॥ इति श्रीमहानयहरनामकं पंचमस्मरणं संपूर्णम् ॥५॥ अर्थः-(जो के ) जे जीवो, (संतुहियएण के० ) संतुष्ट हृदयें क रीने (पासह के० ) श्रीपांश्वनाथy ( समरण के०) स्मरण जे , तेने (कुण के ) करे , (तस्स के०) ते जीवोना (अहुत्तरसय के० ) एक शो ने आठ एवा (वाहि के०) व्याधि संबंधि जे (जय के) जय, ते (दू रेण के ) दूर प्रत्ये ( नास के ) नासे डे ॥ २४ ॥ इति नमि ॥५॥ ॥अथ ॥ ॥श्री अजितशांतिस्तवननाम्नः षष्ठस्मरणस्य प्रारंजः॥ अजिअं जिअ सब नयं, संतिं च पसंत सब गय पावं ॥ जय गुरु संति गुणकरे, दोवि जिणवरे पणिवयामि ॥१॥गाहा ॥ अर्थः-जगवान् गर्नस्थ बते तेमनी विजया देवी माताने पोताना वा मी जितशत्रु राजाये द्यूतक्रीमाने विषे न जीती, माटें (अजियं के) अजितनाथ नामा बीजा तीर्थंकर, (च के ) वली ( जिसवनयं के) जीत्युं बे, श्ह लोकादिक सप्तविध सर्व नय जेणे एवा, (संति के०) श्रीशांतिनाथ नगवान् ते, जे वखत गर्जमां हता, ते समय पण जगत ना अशिवोनी उपशांतिने करता हवा, अने हमणां पण जे स्मरणथकी जीवने शांतिने करे बे. ते शांतिनामक शोलमा तीर्थंकर केहेवा जे ? तो के ( पसंत के०) अपुनर्जावें करी निवृत्त थया डे ( सब के ) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy