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________________ २१‍ प्रतिक्रमण सूत्र. व पियासमिति, मनोगुप्ति, वचनगुप्ति, कायगुप्ति एष्ठ प्रवचन माता तणे धर्मे, सदैव साधु श्रावक तो धर्मों, सामायिक पोसह लीधे, रूमी पेरें चितव्यं नहीं, खंगण, वीराधना कीधी ॥ चारित्राचार व्रतविषश्यो अनेरो जे को अतिचार प० ॥ ३ ॥ विशेषतः श्रावकतणे धर्मे सम्यक्त्व मूल बारव्रत सम्यक्त्व तणा पांच तिचार || संका कंख विगिछा० ॥ संकाः - श्री अरिहंत तणां बल, अतिश य, ज्ञान, लक्ष्मी, गांजीर्यादिक गुण, शाश्वती प्रतिमा, चारित्रियानां चारित्र, जिनवचनतणो संदेह की धो ॥ १ ॥ आकांक्षा:- ब्रह्मा, विष्णु, महेश्व र, क्षेत्रपाल, गोगो, आसपाल, पादरदेवता, गोत्रदेवता, देवदेहरानो प्रजाव देखी रोग यावे, इह लोक परलोकार्थै पूज्या, मान्या. बौद्ध, सांख्य, संन्या सी, जरडा, जगत, लिंगीया, योगी, दरवेश, अनेराइ दर्शनीयानुं कष्ट मंत्र, चमत्कार देखी, परमार्थ जाण्या विण मूलाव्या. मोह्या, कुशास्त्र शी ख्यां, सांजल्यां. श्राऊ, संवत्सरी, होली, बलेव, माहीपुंनम, श्रजापमवो, प्रेतबीज, गौरीत्रीज, विणायगचोथ, नागपंचमी, जिल्ला बघ, शीयलस समी, ध्रुवअष्टमी, नोली नवमी, अहवदशमी, व्रत इग्यारसी, वत्सबारसी धनतेरसी, अनंत चौदसी, श्रमावास्या, श्रादित्यवार, उत्तरायन, नैवेद्य याग, जोग, मान्या. पीपले पाणी रेड्यां, रेमाव्यां. घर बाहिर, कू, तलाव, नदी, प्रह, कुंड, वाव्य, समुझें, पुण्यहेतु स्नान कां ॥ २ ॥ विि गिष्ठाः - धर्मसंबंधीयां फलतणो संदेह कीधो जिना रिहंत धर्मना श्रागा, र, विश्वोपकारसागर, मोक्षमार्गना दातार, इस्या गुण जणी पूज्या नहिं इहलोक परलोक संबंधीया जोगवांछित पूजा कीधी रोग, श्रातंक कष्ट वे खीण वचन याग मान्या. महात्माना जात, पाणी, मलशोजा ती निंदा कीधी ॥३॥ प्रीति मांगी ||५|| तेहनी दा दिए लगें, तेहनो धर्ममान्यो ॥ ५ ॥ श्री सम्यक्त्व व्रतविषश्यो अनेरो जे कोइ ० प० ॥ ४ ॥ पहेले स्थूल प्राणातिपात विरमणव्रतें पांच प्रतिचार ॥ वह बंध - ० ॥ द्विपद चतुष्पद प्रत्यें रीषवरों गाढो घाय घाल्यो. गाढ बंधन वांध्यं, घणे नारें पीड्यो, निलंबण कर्म कीधुं, चारा पाणी ती वेलायें सार संजाल न कीधी. लेणे, देणे कुणहने उढ्युं, लंघाव्युं, तेणें भूखें आपण ज म्या, शक्ष्यां धान्य रूडी पेरें जोयां नहीं, पाणी गल्लतां ढोल्युं, जीवाणी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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