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________________ नवकार अर्थसहित. सासय सुहमरहंता, अरहंता हुंतु मे सरणं ॥ १॥" ए प्रथम पाठनो अर्थ थयो. वे ( मोरिहंताणं के० ) नमोऽरिहदन्यः ए वीजा पाउनो अर्थ करे. त्यां (रि०) आठ कर्मरूप शत्रुने ( हंताणं के० ) हणनारा एवा श्री अरिहंत प्रत्यें नमस्कार था. ए विषे या वाक्य बे "विहं पिer कम्मं, रिजूयं होइ सयलजीवाणं ॥ तं कम्ममरिहंता, अरिहंता ते च्चति ॥ १ ॥ " ए गाथानो नावार्थ:- आठ प्रकारनां जे कर्म बे, ते सर्व जीवनेरित एटले वैरीरूप बे, एवा कर्मरूप वैरीने हणनार बे, माटें अरिहंत कड़ेवाय बे. ते प्रत्यें नमस्कार था. तथा अरिहंतना सहायश्री मोक्षरूप नगरने पमाय बे. माटे सार्थवा हनी उपमा, तथा एमना याश्रयथकी जवसमुद्रनो पार पमाय बे, माटे निर्यामकनी उपमा, तथा प्राण, भूत, जीव ने सत्व, ए चार प्रकारना जीवने माह माह एवो शब्द कहे, माटे सर्व जीवो उपर कृपा बे, तेथ नीर्वाणरूप वनप्रत्यें पहचाडे बे, माटे महागोपनी उपमा, ए त्रण उपमा सार्थक बे, ते श्री अरिहंतनेज बाजे बे, एवा श्रीअरिहंतने ए सर्व जीवलोकने विषे लोगुत्तम जावे करी तेमज नमस्कार था. m तथा राग, द्वेष, परिसह, उपसर्ग, एटलाने जे नमावे एटले पांचे इंडि ना वीश विषय, चार कषाय, बावीश परिसह तथा आत्मोबिताने परकृत एव वे प्रकारनी वेदना ने अनुलोम तथा प्रतिलोम, एवा वे प्रकारना उपसर्ग, इत्यादिक शत्रुने हणनार तेमाटे अरिहंत कहियें, ते प्रत्यें नमस्कार था. एवा अरिहंतने मन, वचन ने कायानी एकाग्रतापणे नमस्कार करतो थको जीव, जवनां सहस्रोथकी मूकाय, नाव सहित नम स्कार करतो को बोधिना लाजने पामे, ए वीजा पाठनो अर्थ थयो. वे (मोरुहंताणं के० ) नमोऽरुहस्यः ए त्रीजा पदनो अर्थ कहे बे, तिहां रुहः हीं (रुह बीजतंतुसंताने) ए धातुनुं रुह पद वे एटले की कर्मबी जपणाथ की जेमने फरी संसारमध्यें, ( रुदंत के० ) उपजवुं ( के० ) नथी एटले अरुदंत कहियें, अर्थात् बीजनुं विस्तारपणं नथी. हवे कोण व करवो नथी माटे रुहंत कहीयें, उक्तं च " दग्धे बी जे यथात्यंतं, प्रादुर्भवति नांकुरः ॥ कर्मवीजे तथा दग्धे, न रोहति जव कुरः ॥ १ ॥ " अर्थः-जेम कोइ बीज बे, ते अत्यंतपणे नियें करी बल्युं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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