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________________ प्रतिक्रमण सूत्र. अरहंताणं, बीजो णमो अरिहंताणं, त्रीजो णमो अरुहंताणं, ए त्रणे पाउना निन्न निन्न अर्थो कहे बे. प्रथम (णमो अरहंताणं के०) नमोऽर्हन्यः जे अतिशय पूंजाने अर्हति एटले योग्य ते अरहंत कहिये. अर्थात् अमरवर निर्मित एवा अशोकादि आठ महाप्रातिहार्यरूप पूजाने जे योग्य जे, तेने अरहंत कहियें. ए विषे आबुवचन जेः-"अरहंति वंदण नम, सणाश्अरहंति पूअसक्कारं ॥ सिडिग मणं च अरहा, अरहंता तेण वुच्चंति ॥१॥” ए माटे तेउँने नमस्कार था. तथा अरिहननात् अरहंत एटले संसाररूप गहनवनने विषे अनेक खोने पमामनार एवा मोहादिक शत्रुने हणवाथकी अरहंत कहीये. त था रजोहननात् अरहंत एटले जेम वादलां, सूर्यमंमलने ढांकी मूके बे, तेम आत्माना ज्ञानादिक गुणने ढांकी मूके, एवां चार घातिकर्मरूप रज, तप शत्रुने हणवाथकी अरहंतकहियें तथा रहस्यानावत् अरहंत एटसे दूर थयुं निरवशेष ज्ञानावरणादि कर्मनु पारतंत्र्य जेने विषे अने न हणाय एवं अनुत केवल ज्ञान अने दर्शन, तेणें करी निरंतर प्रत्यक्षपणे करी जाणनारा एवा जगवानने रहस्यनो अनाव डे एटले जेनाथी कांश बानु नथी माटें अरहंत कहियें, आ अरहंत पदना त्रणे अर्थ, पृषोदरादिनी पेठे सिझ थाय . ए माटे तेउँने नमस्कार था. अथवा (अ के०) अविद्यमान ने (रह के) एकांत रूप देश अने (अंत के०) मध्यनाग गिरि गुफादिकनो जेने एटले समस्त वस्तुसमूह गतप्रछन्नपणाने अजावें करी अरहतोंर कहीयें, अर्थात् सर्वविदितपणुं डे जेने एवा अरहोंतर जगवान् तेउँने नमस्कार था. अथवा (अ के० ) अविद्यमान बे एटले नथी (रह के०) रथ जे स्यदन ते सकल परिग्रह उपलक्षणनूत जेने अने (अंत के०) विनाश एटले विनाशना करनारा जे जरादि उपलदणनूत ते जेमने अविद्यमान डे मा. टेअरहांत एटले अरथांत कहियें, एवा अरहांत प्रजुउँने नमस्कार था; __ अथवा अरहयग्न्यः एटले प्रकृष्ट रागादिहेतुजूत एवा मनोज्ञ अने अमनोज्ञ जे विषय तेना संपर्कथकी पण वीतरागादिक जे पोतानो स्वखनाव बे, तेने गंमता नथी, तेमाटें अरहंत कहिये. एवा अरहंत प्रजुउँने नमस्कार था. यतः " थुश् वंदण मरहंता, अमरिंद नरिंद पूयमरहंता । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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