SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 207
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मन्दजिणाणं सवाय अर्थसहित. १८७ अर्थ :- ( जि० ) श्री जिनेश्वर भगवाननी पूजा जक्ति करवी, ( जिणं ० ) श्री जिनेश्वरनी स्तुति करवी, ( गुरु के० ) गु रुनी स्तुति करवी ने ( साह म्मियाण वल्लं के० ) साधर्मियोनी वात्स लता करवी, ए (ववहारस्सय सुद्धि के० ) व्यवहारनी शुद्धि ते (रहजुत्ता ho) रथयात्रा ने ( तिछजुत्ता य के० ) तीर्थयात्रा सहित करवी ॥ ३ ॥ वसम विवेक संवर, नासा समिई बजीवकरुणा य ॥ धम्मि जण संसग्गो, करणदमो चरिण परिणामो ॥४॥ अर्थः- (उवसम के०) उपशम एटले दमा धारण करवी, तथा (विवे sho) विवेक ने ( संवर के० ) संवर जाव राखवो ( जासा समिई के० ) षा समिति (जीव करुणाय के० ) पृथिव्यादिक व प्रकारनो जे जी व निकाय तेमना उपर करुणा, एटले दया राखवी, रक्षा करवी तथा ( धम्मिश्र जण संसग्गो के०) धार्मिक जनोनी साधें संसर्ग करवो, तथा (करण के०) रसनादिक पांच इंडियो तेने ( दमो के० ) दम दमन क र ने (चरिए परिणामो के० ) चारित्रना परिणाम राखवा ॥ ४ ॥ संघोवरि बहुमाणो, पुढय लिहणं पावणाति ॥ सट्टा चि मे, निचं सुगुरू वरसेणं ॥ ५ ॥ इति श्रावक दिनकृत्य सद्याय ॥ ४५ ॥ र्थः - ( संघोरि के० ) चतुर्विध श्रीसंघनी उपर ( बहुमाणो के० ) ब हुमान राखनुं, एटले श्रीसंघनुं बहुमान कर, तथा ( पुछय लिहणं के० ) पुस्तक लखावतुं ने (पावणातिछे के० ) तीर्थमां प्रजावना कर वी. ( सट्टा के० ) श्रावक जनोना ( निच्चं के० ) नित्य करवा योग्य ( किच्च के० ) कृत्य ते ( मेयं के ) एयं एटले ए बे ते ( सुगुरुवए सें के० ) सुगुरुना उपदेशें करी जाणी लेवा ॥ ५ ॥ इति ॥ ४९ ॥ ॥ अथ संथारापोरिस लिख्यते ॥ निसिदी, निसिदी, निसिदी, नमो खमासमणाणं गोय माईणं महामुणणं ॥ आटलो पाठ तथा नवकार त था करेमि ते सामाइयं ए सर्व पाठ त्रण वार कही Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy