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________________ प्रस्तावना. श्रा प्रतिक्रमण जे बे, ते षमावश्यकरूप बे, तेमां प्रथम साम बीजो चतुर्विंशतिस्तव, त्रीजुं वंदनक, चोथुप्रतिक्रमण, पांचमो कायो अने हुं प्रत्याख्यान, एक प्रकारनी आवश्यक क्रियालक्षण- कारि ण , ते विशेषे करी गृहस्थाश्रमीनो धर्म , तिहां संध्याकालने वि नपूजनानंतर श्रावक जेडे, ते साधुनी पासें अथवा पोषधशालाने जश्ने प्रतिक्रमण करे, ए प्रतिक्रमण शब्द, आवश्यक विशेषवाची ने पण आहिं सामान्यतायें करी षड्विध आवश्यक क्रियाने विषे रूढ बै उ आवश्यकमध्ये पहेलु सामायिक जे , ते आर्तरोऽध्यानपरिहार धर्मध्यानकरणे करी शत्रु, मित्र, पाषाण तथा कांचनादिकने विषे । जावरूप बे, माटें प्रारंजमां कडं बे, बीजो चतुर्विंशतिस्तव, एटले चे श तीर्थंकरना नामकीर्तनपूर्वक गुणकीर्तन तेनुं कायोत्सर्गने विषे मन अनुध्यान होय बे, माटें तेने बीजं कडं बे, त्रीजुं वंदनक एटले वांदवायो एवा धर्माचार्यने पच्चीश आवश्यकें विशुक, बत्रीश दोष रहितनमस्का करवो, ते पण युक्तज , चोथुप्रतिक्रमण ते शुजयोगथकी अशुजयोग विषे गमन करनारने फरी पालुं गुजयोगमांज क्रमण करवू, तेने प्रति क्रमण कहियें, ऐटले मोक्षफल आपनारा एवा शुजयोगने विषे निःशल्य थर्बु तेने प्रतिक्रमण कहिये. तिहां मिथ्यात्व थवाथी तथा असंयम थवा थी तथा कषाय थवाथी अशुनयोग थाय, ते अशुजयोगना विछेदने माटें जे निंदाछारें करीने अशुन्जयोग निवृत्तिरूप पमिकमणुं करवं, ते अतीत काल विषयिक पडिकमणुं जाणवू, तथा संवरछारें करीने वर्तमान काल विषयिक पमिकमणुं जाणवु अने अनागतकाल विषयिक पमिकमणुं पण संवरहारें करीने बे. माटे तेमां पण दोष नथी. ए रीतें त्रिकाल विषयि क प्रतिक्रमण सिफ थाय जे. ए प्रतिक्रमण विधिकोश्स्थानकें रूढी, कोश स्थानकें षमावश्यक क्रियामां घटमान . ते प्रतिक्रमण, पांच प्रकारें बे. तेमां एक दैवसिक, बीजुं रात्रिक, त्रीजु पादिक, चोथु चातुर्मासिक आ पांचमुं सांवत्सरिक बे, ते पांच प्रकारना प्रतिक्रमणनो विधि यथावका Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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