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________________ चनक्कसाय अर्थसहित. १७४ ॥ अथ चउकसाय ॥ चउकसाय पमिमल्नुबूरणु, उजय मयण बाण मुसुमूरणू .. सरसपिअंगु वन्नु गयगामिन,जयन पासुनुवणत्तय सामिज॥२॥ अर्थः-(नुवणत्तयसामिन के ) त्रण जुवनना स्वामी, (पासु के०) श्रीपार्श्वनाथ जे. ते (जयन के०) जयवंता वत्तॊ. ते श्रीपार्श्वनाथ केहवा ने ? तो के, (चउकसाय के) क्रोधादिक चार कषायरूप जे (पमिमल्ल के०) प्रतिमन एटले वैरी, तेना (उतरणु के०)नबेदनार ,एटले टालनार बे, वली केहवा ? तो के (उऊय के०) उर्जय एटले फुःखें जीत्यो जाय एवो (मयण के) मदन एटले कंदर्प ते संबंधी जे ( बाण के०) बाण, एटले तीदण बाण, तेना (मुसुमूरण के०) नाजनार बे, एटले उन्मूलन करनार जे. वली केहवा जे? तो के (सरस के०) रसें करीने सहित एटले स्निग्ध, नीलो एवो (पिअंगु के०) प्रियंगु ते रायणनो वृदा, ते समान (वन्नु के०) शरीरनो वर्ण जे जेनो, वली केहेवा जे? तो के (गयगामिड के०) गजनी पेरें गमनना करनार बे, अर्थात् हस्तीनी जेवी गति ॥१॥ जसु तणु कंति कमप्प सिणिन, सोहर फणम णि किरणा लिन ॥ नं नवजलहर तडिल्लय संग्नि, सो जिणु पासु पयन वंनि ॥२॥इति ॥४५॥ अर्थः-( सो के० ) ते ( जिणुपासु के० ) श्रीपार्श्वजिन ते, (वंडिज के) महारां वांबित प्रत्ये (पयन के ) आपो. हवे ते श्रीपार्श्वजिन केहवा ? तो के (जसु के) जेना ( तणु के० ) शरीरनी ( कंति के०) कांति एटले युति तेनो ( कमप्प के) कलाप एटले समूह ते ( सोहर के० ) शोने जे. ते कांतिसमूह केहवो ? तो के ( सिणिझन के) स्निग्ध , एटले चीकाश सहित बे, वली ते कांतिसमूह केहवो ? त्तो के (फणि के० ) नागेंनि फण ते संबंधि जे ( मणि के०) मणिरत्न तेना (किरण के०) किरणोयें करी (आलिफज के ) व्याप्त बे, एटले सहित बे, वली ते कांतिसमूह केवी रीतें अने केवो शोने ? तो के ( तडित् के०) विजली, तेनी ( लय के०) लतायें करी ( लंठिन के० ) लांछित २३ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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