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________________ लघुशांतिस्तव अर्थसदित. ११ तेणे करीने (कृत के०) कस्यो ने चित्तने विषे (तोषा के० ) संतोष जेणे एवी (विजया के०) विजयानामें जे देवी बे, ते श्री शांतिजिनना नाम स्मरण करनारा एवा जे (जन के०) जन एटले मनुष्य, तेनुं (हितं के०) हित जे तेने (कुरुते के०) करे डे, (च के०) वली ते विजया देवी केहवी ने ? तो के (इति के०) ए पूर्वे कह्यो एवो जे प्रकार ते प्रकारे करीने ( नुता के० ) नमेली , स्तुति करेली , श्रीशांतिनाथने एवी २ ॥६॥ नवतु नमस्ते नगवति, विजये सुजये परापरैर जिते ॥ अपराजिते जगत्यां, जयतीति जयावदे नवति ॥७॥ अर्थः-(जगवति के०) अहीं लग शब्द जे , ते ज्ञान, माहात्म्य, यशो, रूप जे वीर्य, तेनो प्रयत्नेहालक्षण अहण करवो, ते जेने विद्यमान होय, तेने जगवती कहीये. तेना आमंत्रणे हे जगवति एवी (विजये के०) सह न न करी शके एवा ावाला पुरुषोनुं परानव करवापणुं ने जेना विषे तेना संबोधने हे विजया देवि ! तथा ( सुजये के०) जेना प्रतापनी वृद्धिने शत्रुयें परानव कस्यो नश्री, तेना संबोधने हे सुजयादेवि ! अथवा सुजय एटले शोजन के जयपणुं जेने अथवा सु एटले अतिशयें करीने डे जय जेनो एवी तेना संबोधने हे सुजयानामा देवि ! तथा (परापरैर जिते के०) पर एटले उत्कृष्ट एवा अपर एटले अन्य देवो तेमणे नजिता एटले नथी पराजव कस्यो जेनो तेवा संबोधने हे परापरैर जिते देवि ! अर्थात् हे अजितादेवि ! तथा (अपराजिते के०) को स्थानकें परानवने न पामेली एवा आमंत्रणे हे अपराजिता देवि ! तमो (जगत्यां के) पृथि वीने विषे (जयति के ) जयवंतां वत्तों, (इति के) एम स्तुति करे बते ( जयावहे के०) स्तुति करनार नक्तजनने जयनी आवहन करनारी थाय , तेने संबोधने हे जयावहा देवि ! तथा (जवति के० ) स्त्रीलिंगें नवत् शब्दना संबोधने हे नवति ! ए प्रकारनी पूर्वोक्त एक विजया, बीजी जया, त्रीजी अजिता, चोथी अपराजिता, एवी चार देवियो, (ते के०) तमोने ( नम, के०) नमस्कार (जवतु के) थाउँ ॥७॥ सर्वस्यापि च संघस्य, नकल्याणमंगलप्रददे ॥ साधूनां च सदा शिव, सुतुष्टिपुष्टिप्रदे जीयाः॥७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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