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________________ आयरिय उवद्याए अर्थसहित. १५ अर्थः-पंचाचारसंपन्न अथवा उत्रीश गुणें विराजमान, अर्थदानना दातार, तेने (आयरिय के० ) आचार्य कहियें. तथा समीप रह्या अने आव्या जे शिष्यादिक तेने सूत्रना जणावनार अथवा पच्चीश गुणे बिराज मान तेने ( उवद्याए के) उपाध्याय कहीयें, तथा ग्रहण शिदा अने आसेवनाशिदाने योग्य होय तेने ( सीसे के०) शिष्य कहीयें, तथा श्रका अने प्ररूपणादिक गुणें करीने जे आपणा सरखा होय, एवा सरखा धर्मना पालनार, तेने ( साहम्मिए के) साधर्मिक कहियें, तथा जे एक आचार्यनो शिष्य संतान परिवार, तेने ( कुल के० ) कुल कहिये, तथा घणा आंचायना शिष्यसंतान परिवार, तेने (गणे के०) गण एटले समुदाय कहिये. ( अ के० ) ए अ ते वली वली कहेवाने अर्थे जे. ए सर्वनी उपर (मे के०) महारे जीवें (जे के०) जे(कश्के०) कोश पण (कसाया के०) क्रोधादिक कषाय कीधा होय, ए कारणे ( सवे के०) सर्व ते आचार्या दिकप्रत्ये (तिविहेण कें) त्रिविधं करी एटले मन, वचन अने कायायें करी (खामेमि के०) हुँ खामुं हुं ॥१॥ आ गाथामां लघु बत्री. श, गुरु त्रण, सर्व अदर पांत्रीश जे. सबस्स समणसंघस्स, लगव अंजलिं करिय सीसे ॥ सवं खमावश्त्ता, खमामि सबस्स अदयंपि ॥ २ ॥ अर्थः-(सीसे के ) मस्तकनी उपर ( अंजलिं के ) बे हाथप्रत्ये ( करिय के) करीने एटले स्थापीने नम्रीनूत थश्ने (सवस्ससमणसंघ स्सनगव के०) सर्व श्रमणसंघरूप नगवंतना कीधा जे अपराध, ( सवं के) ते सर्व अपराधप्रत्ये ( खमावश्त्ता के० ) खमावीने, वली एम कहे, के (सवस्स केu) ते सर्वना करेला अपराध प्रत्यें (अहयंपि के०) हुं पण (खमामि के०) खमुं बुं, एटले सम्यक् प्रकारे सहन करूं धूं ॥२॥ आ गाथामां लघु एकत्रीश अने गुरु सात, मली सर्वादर आमत्रीश ॥ सबस्स जीवरासिस्स, नाव धम्म निदिय नियचित्तों ॥ सवं खमावश्त्ता, खमामि सबस्स अदयंपि॥३॥३४॥ __ अर्थः-(नाव के०) नावथी ( सवस्सजीवरासिस्स के०) एकेडिया दिक सर्व जीवनो राशि एटले समूह तेनो कीधो जे में अपराध, ते (सवं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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