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प्रतिक्रमण सूत्र.
जेनुं दासपणुं करीयें, तेनी श्राज्ञाथकी तथा मंत्री, श्रेष्ठी, तेनी आज्ञा थ की, मिथ्यादृष्टि संबंधि रथ यात्रा प्रमुख जोवाने कौतूक जोवाने -
एटले मीथ्यात्वीनां देव, देहरां प्रमुखने विषे उत्सवादिक जोवाने ( थागमणे निग्गमणे के०) आगमन, निर्गमन कर एटले जावुं तथा यवकुं तथा (ठाणे ho) मिथ्यात्वीने स्थानकें उत्जां रहेतां, ( चंक्रमणे के० ) तिहांज अहां परहां फरतां, जे अतिचाररूप पाप बांध्युं, ते (पक्किमेदे सियं स ho) ते सर्व दिवस संबंधिया अतिचार लाग्या होय, तेथी पक्किमुं तुं, निवर्त्ती, हयां प्राकृत शैलीना वशथकी वकारनो लोप थाय बे, तेमाटे, 'देसि स' पाठ को बे, परंतु 'देवसियं सर्व' पाठ को नथी. वली या ठेकाणे प्रजातें 'राज्य' एवो पाठ कहियें, अने परिकएं 'परिकयं एवो पाठ कहियें, तथा चडमा सियें 'चउम्मा सियं' एवो पाठ कहियें, तथा संक वरियें 'संवछरियं' एवो पाठ कहियें ॥ ५ ॥
हवे सम्यक्त्वना तिचार बालोवे बे.
संका कंखे विगिचा, पसंस तद संथवो कुलिंगीसु ॥ सम्मेत्तस्स रे, पक्किमे देसियं सवं ॥ ६ ॥
अर्थः- प्रथम जीवादिक नव तत्वनेविषे जीव बे, किंवा नथी ? तथा जि जाति वचनने विषे ए साधुं हशे के केम हशे ? एवो संदेह करवो तेने ( संका के० ) शंका जाणवी, बीजुं अल्प स्वल्प क्षमादिक, अहिंसा दिक गुण, परदर्शनी मां देखीने ते उपर अजिलाप उपजे, ते (कंख के०) कांदा कहियें, श्रीजुं दानादिक धर्म कस्यानुं फल हो, के नहिं होय ? रखे फोक ट प्रयास करवो पतो होय ? एवो संदेह धरवो, अथवा साधु, साधवीनां शरीर, वस्त्र मलिन देखी डुगंडा करे. ते (विगिठा के० ) विगुप्सा क हियें. चोथो (कुलिंगीसु के० ) कुलिंगि मिथ्यात्वीने विषे (पसंस के० ) प्रशं सा करे, ते प्रशंसा कहियें, (तह के० ) तथा पांचमो कुलिंगी मिथ्यात्वी ने विषे संस्तव, परिचय करे, ते ( संघवो के० ) संस्तव कहियें.
ए दर्शनमोहनीय कर्मना क्षायोपशमादिक पणा थकी उत्पन्न थयो जे जिनप्रणीत तत्त्वश्रद्धानरूप आत्मानो शुनपरिणाम, तेने ( सम्मत्तस्स २) सम्यक्त्व कहियें, तेना ए पांच ( इयारे के० ) अतिचार जाणवा.
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