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________________ अरिहंत चेाणं अर्थसदित. १ शुधनो उच्चार करतां देव वांदवामां ध्यानने बलें जीव तीर्थंकरगोत्र मेघर थराजानी परें उपार्जन करे ॥ इति जयवीयराय सूत्रार्थः ॥ इति ॥ १७॥ हवे पंचांग प्रणाम करी उन्नो थर पगे जिनमुखा अने हाथे योगमु जा साचवतो थको चैत्यस्तव दंमक कहे, ते लखे ॥ ___॥ अथ अरिहंत चेश्याणं ॥ अरिहंत चेश्आणं, करेमि कानस्सग्गं ॥१॥ अर्थः-(अरिहंतचेश्याणं के०) अरिहंतचैत्यानां एटले अहीं अरिहंत शब्दें नावअरिहंत लेवा,तेमनी चैत्य शब्दें,चित्तने समाधिनी करनार प्रतिमा समजवी,ते प्रतिमाने वंदना दिने अर्थे (करेमिकाउस्सग्गं के०) करोमिकायो त्सर्ग एटले हुँ कायोत्सर्ग करुं बुं. ए संबंध, एटले एक स्थानकें रही मौन कर बु, ध्यान धरवू, एटलां वानां विना बीजी क्रियानो त्याग करवो,तेने काउस्स ग्ग कहियें ए वे पदें करीअरिहंतनां चैत्य वांदवा निमित्तें काउस्सग्ग करीश. माटें अरिहंत वांदवानी अंगिकाररूप प्रथम अभ्युपगम एटले अंगीकार संप दा जाणवी. एमां पद बे, लघु तेर, अने गुरु बे, सर्व मली पंदर अदरो बे॥१॥ ॥वंदणवत्तिआए, पूअणवत्तिआए, सकार वत्तिआए, सम्माणवत्तिाए, बोदिलान वत्तिआए, निरुवसग्गवत्तिाए ॥ २ ॥ अर्थः-हवे श्री तीर्थंकरनी प्रतिमाने वंदन आदिक जे जे निमित्ते का उस्सग्ग करवो, ते निमित्त कहे . ( वंदणवत्तिाए के) वंदनप्रत्ययं एटले प्रशस्त मन, वचन अने कायानी प्रवृत्ति त्रिधा शुद्धियें प्रणामर्नु करवू तेथकी जे निर्जरारूप फल थाय बे, ते फलने निमित्ते अर्थात् परमेश्वरनां चैत्य वांदतां जे पुण्य थाय, ते पुण्य, काउस्सग्ग करतां मुझने होजो. अहीं प्राकृत जणी वत्तिाए एवो शब्द थयो जे. एम काउस्सग्ग करतां मुझने फल होजो. इत्यादि नाव, आगले पांचे पढ़े जाणवो. (पूत्र णवत्तिाए के०) पूजनप्रत्ययं एटले गंध, कर्पूर कस्तूरी, फल, फूल, चंद नादिकें पूजानुं करवं, ते थकी जे निर्जरारूप फल थाय . ते फलने अथे काउस्सग्ग करुं बु. ( सकारवत्तिाए के) सत्कारप्रत्ययं एटले सस्कार ते नलां वस्त्र, आजरणादिकें करी पूजवू, तेथकी जे निर्जरारूप ११ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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