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४ निमिसेण एन एजवि जश् लब्ज सच्चं जं जुस्किय व-सेण किं जंबरु पञ्चश् ॥२७॥ तिहुअण सामिय पास नाह मश् अप्पु पयासिन, कि जान जं निय स्व-सरिसु न मुणन बहु जंपिन; अन्नु न जिण जग्गि तुद समो वि दखिन्नु दयसन, जइ अवगन्नसि तुह जि-अहह कह हो सु दयासन ॥ ॥ ज तुहरु विण किण व-पेय पाश्ण वेल विय उ, तुवि जाण जिण पासि तुह्मि इं अंगीकरित; श्य मह इस्थित जं न हो। स तुह उहावणु, रक्खं
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