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खंतह निय कित्ति-णेय जुझार अव हीरणु ॥ श्ए ॥ ए हमहारिय जत्त देव श्हु न्हवण महुसउ, जं अण लिय गुणगहण-तुह्म मुणि जण अ णिसिझन; एम पसीय सुपास-नाह थंजण पुरठिय; श्य मुणिवरु सि रि अजय देउ विन्नव अणि दिय. ___ इति श्री जयतिहुअणस्तोत्रं संपूर्णमि ति भद्रं भवतु सकलस्य जगतः शान्तिः ॥
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