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अवहीरि-पास पालिहि विलवं तन ॥१७॥ किं किं कपिज, नेय कलुणु किं किं व न जंपिउ, किं वन चिटिग्ज, किट्रवु-देव दीणय मऽवलं बिज, कासु न किय निप्फबललि अम्हेहि हत्तिहि, तहवि न पत्तन ताणु-किंपि पर पहु परि चत्तिहि ॥ १७ ॥ तुहु सामिन तुहु माय-बप्पु तुहु मित्त पियंकरु, तुहु गश् तुहु मइ तुहुजि-ताणु तुहु गुरु खेमंकर; हवं ह नर ना रिउ-वराउ राउ निब्जग्गह, लो ण तुह कम कमल-सरणु जिण
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