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जए ट्रम्-सुट्नु अविसंटवुलु चिटहि, श्य तिहुअण वण सीह पास पा वा पणासहि ॥ १६ ॥ फणि फण फार फुरंत रयणकर रंजिय नद यल-फलिणी कंदल हल तमाल निलुप्पल सामल; कमगसुर उबस. ग्ग-मग्ग संसग्ग अगंजिय, जय प. चरक जिणेस-पास थंनणय पुर ट्रहिय ॥ १७ ॥ मह मणु तरलु प. माणु-नेय वायावि विसंटवुनु, नेय तणुरऽवि अविणय-सहा अलस विहलंथतु; तुह मादप्यु पमाणुदेव कारुणण पवित्तल, श्य म मा
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