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७३ जार परिजुएण-करण नवु सु कुट्रिवण, चक् क्खीण खएणखुणण नर सल्लिय सूलिण; तुह जिण सरणरसाय-णेण लहु हुँति पुणगुणव, जय धन्वंतरि पास. महवि तुह रोगहरो नव ॥३॥ विजा जोइस मंत तंत सिभिल अपय त्तिण,जुवणऽब्जुन अविह-सिद्धि सिज्जहि तुह नामिण; तुह ना मिण अपवित्त वि जण होइ पवित्तल, तं तिहुअण-कवाण-कोल तुह पास निरुत्तम ॥खुद्द पउत्तर मंत-तंत जंता विसुत्तर, चर थिर
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