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॥ जयतिहुअण स्तोत्र.॥
जय तिहुश्रण वर कप्प-रुक्ख जय जिण धन्नंतरि, जय तिहुश्रण कहाण-कोस पुरि करि केसरि; तिहुश्रण जण अविलंघियाण जु वण त्तय सामिश्र, कुणसु सुहा जिणेस-पासु यंत्रण पुर टिठय॥१॥ तश् समरंत लहति फत्ति वर पुत्त कलत्तर, धएण सुवएण हिरएणपुरण जण झुंजश् रजा, पिरकश मुरक असंख-सुरक तुह पास पसा श्ण, श्य तिहुण वर कप्प रुक सुरकर कुण मह जिण ॥२॥ जर ज.
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