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मंदर दिसागय सोहिया सहि वसह सीहरह चक्क वरं किया ॥ पाठांतर ॥ सिविल सुलंगणा ॥ ३२ ॥ ललिययं ॥ सहाव लट्ठा सम प्पइहा, श्रदोस पुछा गुणेहिं जिहा ॥ पसायसिद्धा तवेण पुछा, सिरीहिं इठा रिसीहिं जुठा ॥ ३३ ॥ वाण वासिया॥ ते तवेण धुय सब पावया, स वलो दिय मूल पावया ॥ संयुया अजि संति पावया, हुतु मे सिव सुहाण दायया ॥ ३४ ॥ अपरां (तका ॥ एवं तव बल विजलं. शुद्धं मए अजिा संति जिए जु
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