________________
१ ग्गो ॥ चनदस वर रयण नव म. हानिहि चनसहि सहस्स पवर जुवईण सुंदरव, चुलस हय गय रहसय सहस्स सामी, बमवश्गाम कोमि सामी आसिजो नारहम्मि जयवं ॥११॥ वेढ ॥तं संति संतीकर, संतिम सबनया ॥ संतिं थुणामि जिणं, संति वेहेन मे ॥१॥ रासानंदियं ॥ युग्मं ॥ इकाग विदेह नरीसर, नर वसहा मुणि वस हा ॥ नव सारय ससि सकलाणण विगय तमा विहुअ रया ॥ अजि उत्तम तेथ गुणेहि, महा मुणि अ
Jain Educationa Interhati oraalsonal and Private Use Owlw.jainelibrary.org