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________________ ३ नहीं, अब मैं कभी, कहीं भी, अकेली नहीं हैं ओह, मेरी शैया किसने छीन ली ? सारी सृष्टि जल-प्लावन की उत्ताल तरंगों में बदल गई है। एक अथाह जल-लोक में उतरी चली जा रही हूँ। एक कोमल कमनीय, फिर भी कराल नागकुमार की बाँहों में जकड़ी हूँ। तात्त्विक जल का सीमाहीन अन्धकार राज्य । भय के मारे गला भिंच गया है। कैसे चीख कर पुकारूँ : ओ मेरे त्राता, तुम कहाँ हो ? .. उस फाँसी में अचानक मेरी आँखें ऊपर की ओर खुल गई हैं, अपार जल-पटलों को भेद कर । देख रही हूँ : एक विशाल नाव, नर-नारी बालकों से खचाखच भरी, गंगा के विस्तीर्ण पाट को पार कर रही है : पर पार जाने के लिये। हठात् पानी भरी आँधियाँ, मेघों के उमड़ते पहाड़, उनमें कड़कड़ाती बिजलियाँ । और प्रलयंकर तूफ़ान में नाव, प्रचण्ड तरंगों में उलटने-पलटने लगी। यात्रियों की त्राहि माम् चीत्कारें इस प्रलय में डूबी जा रही हैं। और एक तुंगकाय नग्न पुरुष, नाव की ठीक नोक पर निश्चल मेरु की तरह खड़ा है। उसकी अकम्प छाती में, तूफ़ान जैसे मानुषोत्तर पर्वत से टकरा कर पराजित हो रहा है। "अचानक वह पुरुष, सनसनाता हुआ जललोक के तल में उतर आया। और भुजाएँ पसार कर, उसने सारे जल-जगत् को अपने आलिंगन में बाँध लिया। मेरे शरीर को एक विराट् जल-शरीर ने कटिसात् कर लिया। क्रोध से फुकारता नाग कुमार एक अद्भुत मुक्ति की ऊष्मा में जाग उठा। निवेदित हो कर बोल उठा : 'ओह, तुम इतने कोमल, इतने प्रेमल, इतने प्रबल ? इस जलराज्य का स्वामी मैं नहीं, तुम हो। तुम, जो तत्त्व मात्र के एकराट् सत्ताधीश हो। मैं शरणागत हूँ।'. और वह नाग कुमार मेरी गोद में शिशुवत् सो गया। मैंने आँखें उठाईं, तो तुम वहाँ नहीं थे। चटक धूप में नाव गंगा पार के तट पर जा लगी है। हर्ष की किलकारियाँ करते मानवों का कोलाहल। और हठात् पाया, कि मैं अपने कक्ष में फ़र्श पर औंधी पड़ी हूँ। कितनी अकेली। फूट कर रोती हुई। और वह सारा तूफ़ान मेरी धमनियों में बन्दी हो कर गरज रहा है। तूफ़ान नहीं, मेरा अपना ही काम है यह। हाय, मेरे मानुष-तन के सीमान्त टूट रहे हैं। और तुम्हारे बलात्कार का अन्त नहीं।" Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003848
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
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