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‘सत्यानाश···सत्यानाश । सत्य - प्रकाश सत्य प्रकाश । सत्यानाश सत्यासत्य - प्रकाश ! '
नाश । सत्य - प्रकाश
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कल्पान्तकाल के उस समुद्र-गर्जन में, सारे जम्बूद्वीप के सत्तासिंहासन उलट-पलट होते दिखायी पड़े ।
अकस्मात् श्री भगवान् का रक्त कमलासन शून्य दिखायी पड़ा। उन्हें किसी ने वहाँ से उठ कर सीढ़ियाँ उतरते नहीं देखा ।
असंख्य-जिह्व ज्वालाओं का एक सहस्रार समवसरण के तमाम मण्डलों में मँडलाता दीखा ।
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और श्री भगवान् का धर्मचक्र, महाकाल के मेरुदण्ड को भेद कर, दिक्काल का अतिक्रमण कर गया ।
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