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________________ परिप्रेक्षिका सन् १९७३ के अप्रैल महीने में श्रीमहावीर जयन्ती के दिन 'अनुत्तर योगों' का यह सर्जन अनुष्ठान आरम्भ हुआ था । गत अप्रैल १९८१ में इसे चलते आठ वर्ष पूरे हो गये, और अब नौवाँ वर्ष चल रहा है। सन् ७८ की फरवरी में तृतीय खण्ड निकला था, और अब सन् ८१ का सितम्बर आ लगा है तब जा कर कहीं चतुर्थ खण्ड प्रकाशन की अनी पर आ खड़ा हुआ है। इस खण्ड का मूलपाठ (टेक्स्ट) तीन महीनों से छपा पड़ा है, और केवल इस अनिवार्य 'परिप्रेक्षिका' के लिए प्रकाशन रुका रहा है। इन रुकावटों की पीड़ा को स्वयम् रचनाकार ही भोग और समझ सकता है, अन्य कोई नहीं । इन आठ-नौ वर्षों के दौरान कितनी दैविक, दैहिक, भौतिक बाधाओं के बीच से इस सर्जन को चलना पड़ा है, उसकी कल्पना निरे मानुष भाव में सम्भव नहीं है । स्वयम् उनके भोक्ता -- मेरे लिये भी नहीं । मेरे ही आश्चर्य की सीमा नहीं, कि इतने मारक संघर्षो के मुसलसल दौर के बीच भी, कैसे इस क़िस्म का विस्तृत, गहन और सूक्ष्म रचना - कर्म जारी रह सका । एक ऐसा सृजन, जिसका नायक मनुष्य हो कर भी केवल मनुष्य पर समाप्त नहीं था, बल्कि वह मानुषिक सीमाओं से परे का अतिक्रान्त पुरुष भी था । यही उसकी नियति थी, और इसी कारण आज वह भगवत्ता के सिंहासन पर प्रतिष्ठित और पूजित है । इतिहास में घटित हो कर भी, इतिहास से बाहर खड़ा आदमी । लोक में हो कर भी लोकोत्तर की ऊँचाइयों को छूता और भेदता एक अतिमानव । और रचना में उनके मानव और अतिमानव रूपों को एक साथ, संयुक्त और परस्पर में संक्रान्त और समानान्तर घटित होना था । महावीर भगवान था या नहीं, यह रचना के लिए प्राथमिक नहीं। प्राथमिक यह है कि महावीर मनुष्य था । इतिहास में उसके घटित होने का प्रमाण मौजूद है। लेकिन उसकी पूर्णता और भगवत्ता का साक्ष्य भी इतिहास में आलेखित है: कि एक मनुष्य ही अपने परम पौरुष और पराक्रम से भगवान् हो कर पृथ्वी पर चला । मेरे इस नौ वर्ष व्यापी रचनाकाल के कष्टों, बाधाओं, व्याघातों का इतिहास भी, महावीर के मानुष से अतिमानुष होने के संघर्ष-क्रम से कहीं जुड़ा हो, तो मनोविज्ञानतः कोई आश्चर्य का कारण नहीं । द्वितीय खण्ड में Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003848
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
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